भारतीय संस्कृति में मानव जीवन के लक्ष्य भौतिक सुख तथा आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति के लिए अनेक देवी देवताओं की पूजा का विधान है जिनमें माँ दुर्गा शक्तिकी उपासना प्रमुख हैं। माँ दुर्गा शक्ति की उपासना को उतना ही प्राचीन माना जाता है , जितना शिववांङ्मय में सर्वप्राचीन साहित्य अपौरुषेय वेद को। यही कारण है कि देवी कहती हैं- 'मैं रुद्रों एवं वसुओं के रूप में विचरण करती हूं।

माँ दुर्गा शक्ति की उपासना से जीव का कल्याण होता है। माँ दुर्गा शक्ति सभी जीवों की रक्षा करने वाली है। सृष्‍टि का संहार और पालन करने की अपार शक्ति उनके पास है। माँ अपने भक्तों के लिए सदैव भक्तों ने हर प्रकार की पूजा और विधान से मां दुर्गा को प्रसन्न करने के जतन किए। लेकिन अगर

आप व्यस्तताओं के चलते ‍विधिवत आराधना ना कर सकें तो मात्र 108 नाम के जाप करें

दुर्गा जी के 108 नाम

महारानी जग कल्याणी तेरी वाहन कमाल है शेर की सवारी माँ तुम्हारी बे मिसाल है

ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ॠषिः, अनुष्टुप

छन्दः, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वत्यो देवताः,

सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः ।

1-ॐज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥ १ ॥

2 - दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥ २ ॥

3 - सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते ॥ ३ ॥ 4 - शरणागतदीनार्तपरित्राणे । सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तु ते ॥ ४ ॥

5 - सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते ॥ ५ ॥

6 - रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् । त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां

7 - त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्र्यन्ति ॥ ६ ॥सर्वबाधाप्रश्मनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि ।एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥ ७ ॥

देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

1-सती 2-वैष्णवी 3-चामुंडा 4-साध्वी 5-वाराही 6-भवानी 7-भवप्रीता 8-लक्ष्मी 9-भवमोचनी 10-पुरूषाकृति 11-आर्या 12-विमला 13-दुर्गा 14-उत्कर्षिणी 15-जया 16-ज्ञाना 17-आद्या 18-शूलधारिणी 19-बुद्धिदा 20-पिनाकधारिणी 21-क्रिया 22-त्रिनेत्रा 23-नित्या 24-चंद्रघंटा 25-सर्ववाहनवाहना 26-बहुला 27-चित्रा 28-निशुम्भशुम्भहननी 29-मन: 30-महिषासुरमर्दिनि 31-शक्ति 32-बहुलप्रेमा 33-महातपा 34-मधुर्कटभहंत्री 35-अहंकारा 36-चण्डमुण्डविनाशिनि 37-चित्तरूपा 38-सर्वअसुरविनाशिनि 39-चिता 40-सर्वदानघातिनी 41-चिति 42-सर्वशास्त्रमयी 43-सर्वमंत्रमयी44-सत्ता 45-सर्वअस्त्रधारिणी46-सत्यानंदस्वरुपिणी 47-अनेकशस्त्रहस्ता48-अनन्ता 49-अनेकास्त्रधारिणी 50-भाविनि 51-कुमारी 52-भाव्या 53-एककन्या 54-भव्या 55-कैशोरी 56-अभव्या 57-युवति58-सदागति 59-यति: 60-शाँभवि 61-अप्रौढ़ा 62-देव माता 63-प्रौढा़ 64-चिंता 65-वृद्धमाता 66-रत्नप्रिया 67-बलप्रदा 68-सर्वविद्या 69-महोदरी70-दक्षकन्या 71-मुक्तकेशी 72-दक्षयज्ञविनाशिनी 73-घोररूपा74-अपर्णा 75-महाबला76-अनेकवर्णा 77-अग्निज्वाला 78-पाटला 79-रुद्रमुखी80-पाटलावती81-कालरात्रि 82-पट्टाम्बरपरिधाना 83-तपस्विनी 84-कलमंजिररंजिनी 85-नारायणी86-अमेय विक्रमा 87-भद्रकाली88-क्रूरा 89-विष्णुमाया 90-सुंदरी 91-जलोदरी 92-सुरासुंदरी 93-शिवदूती 94-वनदुर्गा 95-कराली 96मांतंगी 97-अनंता 98-मतंगमुनिपूजिता 99-परमेश्वरी 100-ब्राह्मी 101-कात्यायनी 102-माहेश्वरी 103-सावित्री 104-ऎंद्री 105-प्रत्यक्षा 106-कौमारी 107-ब्रह्मवादिनी 108-बुद्धिबुद्ध

इससे भी माता प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती है। भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। माँ जगत् की प्राणाधार हैं और अपने भक्तों की रक्षा के लिए आश्चर्यजनक प्रमाण प्रकट किया करती हैं।

भक्त इसलिए करते हैं ताकि उनका जीवन सफल हो सके माँ दुर्गा शक्ति अपने भक्तों की सभी प्रकार की बाधाओं एवं संकटों से उबारने वाली हैं और इनकी कृपा से समस्त पाप और इनकी मुद्रा सदैव युद्ध के लिए अभिमुख रहने की होती हैं, अत:भक्तों के कष्ट का निवारण ये शीघ्र कर देती हैं । माँ दुर्गा शक्ति के अवतार पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। देश के प्रत्येक क्षेत्र में माँ दुर्गा शक्ति की पूजा की अलग परम्परा है। सभी भक्त अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा और उपासना करते है। परंतु इस युग में भगवान शिव और माँ दुर्गा शक्ति के अवतार को सबसे ज़्यादा पूजा जाता है।

इस ब्लॉग के माध्यम से हिन्दू धर्म को सम्‍पूर्ण विश्‍व में जन-जन तक पहुचाना चाहता हूँ और इसमें आपका साथ मिल जाये तो और बहुत ख़ुशी होगी।

यह ब्लॉग श्रद्धालु भक्तों की जानकारी तथा उनके मार्गदर्शन के ध्येय हेतु अर्पित एक पूर्णतया अव्यावसायिक ब्लॉग वेबसाइट है।

अगर कुछ त्रुटी रह जाये तो मार्गदर्शन व अपने सुझाव व परामर्श देने का प्रयास करें।..पर्व-त्यौहार नीचे हैअपना परामर्श और जानकारी इस नंबर +919723187551 पर दे सकते हैं।

आप मेरे से फेसबुक पर भी जुङ सकते हैं। facebook followers

धर्मप्रेमी दर्शन आपकी सेवा में हाजिर है सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।- पेपसिह राठौङ तोगावास

भारतीय संस्कृति में मानव जीवन के लक्ष्य भौतिक सुख तथा आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति के लिए अनेक देवी देवताओं की पूजा का विधान है जिनमें माँ दुर्गा शक्तिकी उपासना प्रमुख हैं। माँ दुर्गा शक्ति की उपासना को उतना ही प्राचीन माना जाता है , जितना शिववांङ्मय में सर्वप्राचीन साहित्य अपौरुषेय वेद को। यही कारण है कि देवी कहती हैं- 'मैं रुद्रों एवं वसुओं के रूप में विचरण करती हूं।

माँ दुर्गा शक्ति की उपासना से जीव का कल्याण होता है। माँ दुर्गा शक्ति सभी जीवों की रक्षा करने वाली है। सृष्‍टि का संहार और पालन करने की अपार शक्ति उनके पास है। माँ अपने भक्तों के लिए सदैव भक्तों ने हर प्रकार की पूजा और विधान से मां दुर्गा को प्रसन्न करने के जतन किए। लेकिन अगर

आप व्यस्तताओं के चलते ‍विधिवत आराधना ना कर सकें तो मात्र 108 नाम के जाप करें

दुर्गा जी के 108 नाम

महारानी जग कल्याणी तेरी वाहन कमाल है शेर की सवारी माँ तुम्हारी बे मिसाल है

ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ॠषिः, अनुष्टुप

छन्दः, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वत्यो देवताः,

सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः ।

1-ॐज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥ १ ॥

2 - दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥ २ ॥

3 - सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते ॥ ३ ॥ 4 - शरणागतदीनार्तपरित्राणे । सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तु ते ॥ ४ ॥

5 - सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते ॥ ५ ॥

6 - रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् । त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां

7 - त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्र्यन्ति ॥ ६ ॥सर्वबाधाप्रश्मनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि ।एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥ ७ ॥

देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

1-सती 2-वैष्णवी 3-चामुंडा 4-साध्वी 5-वाराही 6-भवानी 7-भवप्रीता 8-लक्ष्मी 9-भवमोचनी 10-पुरूषाकृति 11-आर्या 12-विमला 13-दुर्गा 14-उत्कर्षिणी 15-जया 16-ज्ञाना 17-आद्या 18-शूलधारिणी 19-बुद्धिदा 20-पिनाकधारिणी 21-क्रिया 22-त्रिनेत्रा 23-नित्या 24-चंद्रघंटा 25-सर्ववाहनवाहना 26-बहुला 27-चित्रा 28-निशुम्भशुम्भहननी 29-मन: 30-महिषासुरमर्दिनि 31-शक्ति 32-बहुलप्रेमा 33-महातपा 34-मधुर्कटभहंत्री 35-अहंकारा 36-चण्डमुण्डविनाशिनि 37-चित्तरूपा 38-सर्वअसुरविनाशिनि 39-चिता 40-सर्वदानघातिनी 41-चिति 42-सर्वशास्त्रमयी 43-सर्वमंत्रमयी44-सत्ता 45-सर्वअस्त्रधारिणी46-सत्यानंदस्वरुपिणी 47-अनेकशस्त्रहस्ता48-अनन्ता 49-अनेकास्त्रधारिणी 50-भाविनि 51-कुमारी 52-भाव्या 53-एककन्या 54-भव्या 55-कैशोरी 56-अभव्या 57-युवति58-सदागति 59-यति: 60-शाँभवि 61-अप्रौढ़ा 62-देव माता 63-प्रौढा़ 64-चिंता 65-वृद्धमाता 66-रत्नप्रिया 67-बलप्रदा 68-सर्वविद्या 69-महोदरी70-दक्षकन्या 71-मुक्तकेशी 72-दक्षयज्ञविनाशिनी 73-घोररूपा74-अपर्णा 75-महाबला76-अनेकवर्णा 77-अग्निज्वाला 78-पाटला 79-रुद्रमुखी80-पाटलावती81-कालरात्रि 82-पट्टाम्बरपरिधाना 83-तपस्विनी 84-कलमंजिररंजिनी 85-नारायणी86-अमेय विक्रमा 87-भद्रकाली88-क्रूरा 89-विष्णुमाया 90-सुंदरी 91-जलोदरी 92-सुरासुंदरी 93-शिवदूती 94-वनदुर्गा 95-कराली 96मांतंगी 97-अनंता 98-मतंगमुनिपूजिता 99-परमेश्वरी 100-ब्राह्मी 101-कात्यायनी 102-माहेश्वरी 103-सावित्री 104-ऎंद्री 105-प्रत्यक्षा 106-कौमारी 107-ब्रह्मवादिनी 108-बुद्धिबुद्ध

इससे भी माता प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती है। भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। माँ जगत् की प्राणाधार हैं और अपने भक्तों की रक्षा के लिए आश्चर्यजनक प्रमाण प्रकट किया करती हैं।

भक्त इसलिए करते हैं ताकि उनका जीवन सफल हो सके माँ दुर्गा शक्ति अपने भक्तों की सभी प्रकार की बाधाओं एवं संकटों से उबारने वाली हैं और इनकी कृपा से समस्त पाप और इनकी मुद्रा सदैव युद्ध के लिए अभिमुख रहने की होती हैं, अत:भक्तों के कष्ट का निवारण ये शीघ्र कर देती हैं । माँ दुर्गा शक्ति के अवतार पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। देश के प्रत्येक क्षेत्र में माँ दुर्गा शक्ति की पूजा की अलग परम्परा है। सभी भक्त अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा और उपासना करते है। परंतु इस युग में भगवान शिव और माँ दुर्गा शक्ति के अवतार को सबसे ज़्यादा पूजा जाता है।

इस ब्लॉग के माध्यम से हिन्दू धर्म को सम्‍पूर्ण विश्‍व में जन-जन तक पहुचाना चाहता हूँ और इसमें आपका साथ मिल जाये तो और बहुत ख़ुशी होगी।

यह ब्लॉग श्रद्धालु भक्तों की जानकारी तथा उनके मार्गदर्शन के ध्येय हेतु अर्पित एक पूर्णतया अव्यावसायिक ब्लॉग वेबसाइट है।

अगर कुछ त्रुटी रह जाये तो मार्गदर्शन व अपने सुझाव व परामर्श देने का प्रयास करें।..पर्व-त्यौहार नीचे हैअपना परामर्श और जानकारी इस नंबर +919723187551 पर दे सकते हैं।

आप मेरे से फेसबुक पर भी जुङ सकते हैं। facebook followers

धर्मप्रेमी दर्शन आपकी सेवा में हाजिर है सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।- पेपसिह राठौङ तोगावास

Wednesday, 14 January 2015

माँ आवड़ माता (माँ हिंगलाज का आवड़ माता के रूप में अवतार,माँ आवड़ माता की अनेक लिलाये)



                  माँ आवड़ माता
                     (माँ हिंगलाज का आवड़ माता के रूप में अवतार)
                         (माँ आवड़ माता की अनेक लिलाये)
आवङ माता

सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिँह राठौङ की तरफ से नमस्कार! आपने मेरे पिछले ब्लाँग..... मां हिंगलाज माता मंदीर  ......मे माँ सती से लेकर हिंगलाज तक की कहानी विस्तार से पढा, जब जब माँ के भक्तोँ पर विपती आती है या भक्त पुकार करता है, तो निश्चित ही माँ को पुत्र रक्षार्थ किसी न किसी रुप मे माँ को हाजिर होना पङता है। और माँ स्थान, समय, काल, परिस्थितियो मे भक्त को दिये गये रुपदर्शन के रुप मे पुजी जाती है।  
आज मैं बताने जा रहा हूँ कि माँ हिगलाज ने आगे चलकर किस प्रकार, “आवङ माता के रूप मेँ जन्म लिया और फिर माँ आवङ माता के रुप मे अनेक लिलाये दिखाते हुये ....
1.      माँ तेमडे राय
2.      माँ तनोट माता
3.      माँ घंटीयाल राय
4.      माँ भादरिया राय
5.      माँ काले डूगर राय 
6.   माँ पनोधरी राय  
7.      माँ देग राय
अंत में तारंग शीला पर बैठकर पतंग की तरह शशरीर उडान भरी और पश्चिम में हिंगलाज धाम की ओर देखते हुए अदृश्य हो गईं। व तेमड़ा धाम को हिंगलाज का दूसरा दर्जा प्रदान किया।  
आखिर में माता ने हर्षित होकर सात रूपों को एक रूप में समाहित करते हुवे महामाया श्री करणी के रूप में अवतार धारण
माँ हिंगलाज
हे ! मैया, मैं आपकी वंदना करताहूँ !
मैया शुम्भ निशुम्भ नामक असुरो का संहार करने वाली देवी आवड तुम हो, तुम्हारी राम, शिव, ब्रह्मा, महेश आदि देव हमेशा तपस्या और वाणी से स्मरण करते हैं, तुम आवड देवी आदि अनंत हो में आपकी वंदना करताहूँ ! हे जब महामाया का ऐसा चमत्कार होने से सातों दिव्पो में शोभा होने लगी, भगवान भास्कर अपना रथ रोक कर मैया की रास लीला देखने लगे, मलेच्छ युद्ध भूमि छोड भाग गये माता आप भक्तो का उद्धार करने वाली हो, देवताओं सहित पुरी त्रिलोकी की रचना करने वाली हो लेकिन माताजी आप धन्य हे, आप के इस स्वरूप को देखकर पुरा संसार नतमस्तक है। रात्रि को भूखी शेरनि का रूप धारण कर, देत्य रूपेण असुरो का भक्षण करती थी, इस प्रकार जगह जगह जितने भी देत्य असुर थे, उनका आपने संहार कर दिया था।
धरती के सारे असुर मारे गए, जनता में सुख शान्ति हो गई, धार्मिक लोगो का मातेश्वरी के निवास स्थान के पास मेले सा दृश्य होता देख, महामाया के अन्य भक्तो का कष्ट हरने आपका मनुष्य रूपेण
अवतार धारण करने का फ़िर समय आ गया है, भक्त दुखी हो रहे हैं जगह जगह अराजकता फैली हुयी है, में व्याकुल हूँ अधीर हूँ, मुझे सुख पहुचावो व दुनिया को दिखा दो की, आवड शक्ति पहले भी थी और आज भी है व आगे भी रहेगी।........... पेपसिँह राठौङ
8वीं शताब्दी में महाशक्ति हिंगलाज ने सिंध प्रान्त में मामड़ चारण (मम्मट) के घर में आवड देवी के रूप में आवड देवी के रूप में द्वितीय अवतार धारण  

मामडि़या नाम के एक चारण थे। मामड़जी जी निपुतियां थे उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्त करने की लालसा में उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की थी ।

एक बार अपने घर से कहीबहार जा रहे थेउस समय भाट(चारण) जाति की कन्याए जो सामने से जा रही थी,उन कन्याओ ने मामड़जी को देख रास्ते मे अपूठी खड़ी होगई क्योकि सुबह के समय  निपुतियें व्यक्ति का कोई मुह देखना नही चाहताइस बात का रहस्य मामड़जी को समझ मे आ गया, वह दुखी होकर वापिस घर आ गए मामड़जी के घर पर आदि शक्ति हिंगलाज का एक छोटा सा मन्दिर था, वहा पुत्र कामना से अनशन धारण कर सात दिन तक बिना आहार मैया की मूर्ति के आगे बेठे रहे 

आठवे दिन उन्होंने दुखी होकर अपना शरीर त्यागने के लिए हाथ मे कटारी लेकर ज्युहीं मरनेलगे उसी समय शिव अर्धांगनी जगत जननी गवराजा (हिंगलाज) प्रसन्न हुई, उन्होंने कहा - तुने सात दिन अनशन व्रत रखा हे, इसलिए मे सात रूपों मे तुम्हारे घर पुत्री रूपों मे अवतार धारण करुगी और आठवे रूप मे, भाई भैरव को प्रगट करुँगी, तुम्हे मरने की कोई आवश्यकता नही हे, इतना कह कर मातेश्वरी अंतरध्यान हो गई
माता कि कृपा से चारण के यहाँ 7 पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया।
देवी हिंगलाज माता सूर्य से भी अधिक तेजस्वी है और स्वेच्छा से अवतार धारण करती है। इस आदि शक्ति ने 8वीं शताब्दी में सिंध प्रान्त में मामड़  (मम्मट) के घर में आवड देवी के रूप में द्वितीय अवतार धारण किया था । ये सात बहिने थी-
1-आवड, आवड बाई
2-गुलो- गेल,(गुलीगुलाब बाई)
3-हुलीहोल,हुल(हुलास बाई)
4-रेप्यली-रेपल,रेपली(रूपल बाई )
5-आछो- साँची,साचाई (साँच बाई )
6-चंचिक - राजू,रागली (रंग बाई) और
7-लध्वी- लंगी, खोड़ियार (लघु बाई) सबसे छोटी, आदि नामों से सातों बहनों कर जन्म हुवा।
उन्हीं सात पुत्रियों में से एक आवड़ ने विक्रम संवत 808 में चारण के यहाँ जन्म लिया और अपने चमत्कार दिखाना शुरू किया। सातों पुत्रियाँ देवीय चमत्कारों से युक्त थी।जिसमे महामाया आवड़ व सबसे छोटी लघु बाई ,खोड़ियार सर्वकला युक्त शक्तियाँ का अवतार बताया गया है। इस प्रकार आठवे रूप मे भाई का जन्म बताया गया,जिसका, नाम मेहरखा था।

मातेश्वरी आवड़ का जन्म स्थान
मातेश्वरी आवड़ का जन्म स्थान रोहिशाला ग्राम में (चेलक नामक स्थान) बलवीपुर, जिला सौराष्ट्र, कच्छ प्रान्त (गुजरात), बताया गया हैं। उस समय रोहिशाला ग्राम का अन्तिम राजा शिलादिव्य था

आवड जी ने चेलक नामक ग्राम में, मामड जी के घर बहूत एक पुराने, जाल नामक वृक्ष का रोपण किया
आवड जी ने चेलक नामक ग्राम में मामड जी के घर एक जाल नामक बहूत पुराना वृक्ष का रोपण किया, जो बहूत पुराना वृक्ष था, जिसकी शीतल छाया में गरीबो भक्तो की रखवाली करने और चारण जाती के पुराने भक्त को सुख पहुचाने चेलक ग्राम में प्रगट हुयी, यह ग्राम उस जगह हैं, जहा हमेशा "मोहिला" यानि दयालु मनुष्य रहते हैं। उस स्थान का इशारा गुजरात की तरफ़ ही हैं। इस प्रकार वहा की लोग मैया की जय जयकार कर रहे है। और मैया का प्रत्येक कमजोर प्राणी की रक्षा करती है।

महामाया आवड़जी का सिंध प्रान्त नानणगढ़ (पाकिस्तान) पहुच कर, भगत सेठ कुशल शाह को अपना अलोलिक रूप दिखा कर, “मुनि कुशल सूरी के साथ वणिक (सेठ कुशल शाह) परिवार की कन्याओ को माड़ प्रदेश भेज दिया, और वहा शासक अमर सुमराव उस के पुत्र नुरन का सर्वनाश कर, माड़ प्रदेश मे प्रस्थान-

कुछ समय पश्चात सिंध प्रान्त नानणगढ़ (पाकिस्तान) जहा हिंदू शासक, हमीर राज्य करता था
उस समय अरब के सम्राट (यवन बादशाह) मोहम्मद कासम ने राजा हमीर पर धर्म परिवर्तन करने का अनैतिक दबाव डाला। हमीर ने बादशाह की गुलामी स्वीकार करते हुवे अपना नाम बदलकर अमर सुमरा रख लीया था। इसप्रकार हिंदूशासक हमीर का जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया गया था हमीर सेअमर सुमरा बनके उस ने अपनी प्रजा पर धर्म परिवर्तन करने का अनैतिक दबाव डाला     
इस प्रान्त मे चारण जाति के जाति के साथ अनेक ग्राम थे, उन्होंने धर्म परिवर्तन का विरोध किया,  इससे कुपित होकर अमर सुमरा ने चारणों पर अत्याचार करने लगातब अनेक चारण परिवार सिंध प्रान्त छोड़कर,सौराष्ट्र प्रान्त की तरफ़ चल दिए  

सिंध प्रान्त से आये हुवे चारण जाति व अन्य आर्य जाति के  लोगो ने मातेश्वरी आवड़ा माता के सामने खङे होकर विनती की,“अमर सुमरा शाशक के कुकर्म व अत्याचार का का वर्णन किया इस घटना से आवड़ा माता को दुख हूआ और दुख दूर करने के लिए,आवड़ा माता ने सौराष्ट्र प्रान्त छोड़कर,परिवार सहित मवेशी लेकर सिंध प्रान्त नानणगढ़ (पाकिस्तान) में (की तरफ़) प्रस्थान किया  

सिंध प्रान्त नानणगढ़ (पाकिस्तान) पहुच कर वहा पर वणिक (जो एक जाती से बणिया था) जाति के भगत सेठ कुशल शाह का परिवार रहता था उनकी दो पुत्रिया बहूत सुंदर थी, उस ग्राम में सुमरा जाति के लोक रहते थे उनकी नियत ख़राब हो गई थी, वह उन कन्याओ से जबरदस्ती ब्याव करना चाहते थे कहते हैं जब भगत वणिको को मलेच्छो से बहूत डर लगने से वे मन में बड़े व्याकुल होने लगे थे 

तब मातेश्वरी का, वहा भगत परिवार हितार्थ पहुच कर उन दृष्ट से वणिक परिवार को मुक्त कराया और उन कन्याओ को मुनि कुशल सूरी के साथ माड़ प्रदेश भेज दिया उस मुनि का धाम आज भी वैशाखी तीर्थ है,जहा जैन जाति के वणिक बड़े मन से पूजा करते हैं।

तब मैया ने उन्हें अपना अलोलिक रूप दिखाया जिसमे मैया सिंह पर विराजमान थीसिर पर मुकुट धारण किया हुवा था, देखने में न बालिका थी न बुढिया थी इस अलोकिक रूप को देखकर वणिक हर्षित हुवे और महामाया की शरण ग्रहण की 

अमर सुमरा के सेवक हजामती (जो एक जाती से नाई था) ने जाकर सुमरा शासक से वृतांत सुनाया लेकिन शासक अमर सुमरा चारण जाति की शक्तियों से डरता था उसने उन दृष्टो की बात को   अन सुना कर दिया तब उसने शासक के पुत्र को उकसाया, की उक्त चारण ने ही वैश्य कन्याओ को माड़ प्रदेश भेज देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी जिन वैश्य कन्याओ को प पाना चाहते हैं।

हमें तो कुछ भी नही मिला लेकिन तुम अगर चाहो तो इस चारण परिवार की सभी पुत्री इतनी सुंदर हैं, इन जैसी  हमने आज तक संसार में नही देखी! वह दृष्ट अमर सुमरा (शुमरो) का पुत्र नुरन उन चाटुकारों की बातो को सुनकर मन में मोहित होकर सोचने लगा
तभी उसका सेवक हजामती ने भी मातेश्वरी के रूप लावण्य की प्रशंसा करने लगा और कहने लगा आप बादशाह के युवराज है, आपके लायक यह चारण पुत्री हे तब तो यह बात सुनते ही, उन्हें पाने के लिये आतुर हो गया और तुंरत मामड़जी से अपनी बड़ी पुत्री महामाया आवड़जी का ब्याह करने का प्रस्ताव रखा और कहा कि मना करने पर, आवड़जी के पिता मामड़जी को कैद करने की धमकी दी ।   

तब मामड़जी ने दुखी होकर उन्हें दो दिन बाद जवाब देने को कहा, वापिस घर आये , पिता की परेशानी का आभास हो गया, मैया ने पिता से कहा आप को कोई चिंता करने की जरुरत नही हे
कल बादशाह के दरबार में आपके साथ चलुगी , उसे समझा देंगे , शायद वह मन जायेगा, दुसरे दिन पिता के साथ आवड देवी सुमरे शासक के दरबार में पहुची, सभी दरबारियों और बादशाह के सामने बड़ी उच्च गर्जना करते हुवे कहा; शासक तेरे पुत्र ने जो अधर्म पूर्वक प्रस्ताव रखा हे वह अन्याय पूर्ण हे हम आपकी रियासत में रहते हे, यहाँ का अन्न जल ग्रहण किया है,तुम एक समझदार सम्राट हो अपने पुत्र को समझा देना, अन्यथा मेरे श्राप से तुम्हारा समूल वंश नष्ट हो जायेगा
इतना कहकर देवी अपने निवास पधार गयी

कहते
हैं कि अब सातों बहिनों ने मातेश्वरी आवड जी के आदेश से विचार करते हुए अपने परिवार का यहाँ रहना ठीक न समझकर रात्रि में ही माड़ प्रदेश को गमन किया
बीच रास्ते में एक अथाह हाकड़ा नामक समुन्द्र था
उसने अथाह जल था कही से भी पार होने का रास्ता न देखकर मैया ने समुन्द्र को मार्ग देने को कहा, लेकिन होनी बड़ी प्रबल होती हेमैया की लीला वो जाने ,समुन्द्र मार्ग देना तो दूर रहा , वह तो पहले से दुगने घमंड वेग से उची उची हिलोरे मारने लगा, तब मातेश्वरी के क्रोध की सीमा नही रही , उन्होंने अपनी हाथ की अंगुली से स्पर्श करते हे पुरा अथाह समुन्द्र रेगिस्तान में बदल दिया
धन्य हे मैया की अदभुत लीला


कहते
हैं कि जब चारण परिवार रात्रि को रवाना हो गया तो उन दृष्टो मलेच्छो की बुद्धि भ्रमित हो गयी और सोचने लगे उक्त चारण लड़कियों कोई अवतार वगेरा नही हैं, अगर ऐसा होता तो यू ही रात को थोड़े ही भागती, इस प्रकार उन लोगो में अत्यंत दूषित भावना भर गयी और सारे लोग घोडों पर बैठकर मैया के पुरे परिवार को पकड़ने समुन्द्र के किनारे पहुच गये

तब तक मैया आवड जी ने हाकडा समुन्द्र के जल को शोषण कर लिया (डकार लिया) था, जब उन दृष्टो को आया देखा तो; मैया को इतना क्रोध आया, जिस प्रकार श्री राम ने जनक के शिव धनुष के टुकड़े  किए थे, या जैसे चंड मुंड आदि दृष्टो का संघार किया था, या कपिल मुनि ने जिस प्रकार सागर पुत्रो को भस्म किया था, ऐसा क्रोध करते हुवे मैया ने उनका सर्वनाश कर, आवड जी ने माड़ प्रदेश मे प्रस्थान किया  

सिंध से माड़ प्रदेश मे प्रस्थान कर तेमडा पर्वत परहूण सेना नायक तेमड़ा नमक असुर राक्षस को मार अपना आसन तेमडा पर्वत पर जमा लिया और तेमडेजी (तेमडे राय) भी कह लायी, जहा जैसलमेर घराने के पूर्व कृष्ण वंशी राजा तणू की राजधानी जैसलमेर से तणोट कर उन्हें आशीर्वाद दिया, और वहा पंजाब प्रदेश के शासक लाखियार जाम व जैसलमेर घराने के राजा तणू दोनों नरेशों की आपसी टकराहट रुकवाते हुवे भक्तो के हितार्थ अनेक लिलाए करने लगी   
 
तेमड़ेराय जी जैसलमेर
कहते हैं कि देवियाँ सिंध से तेमडा पर्वत पर आ गईं। तब छ:(छह) देवियोँ ने तेमडा पर्वत को अपना निवास स्थान बनाया था। कहते हैं कि हे महामाया आवड जी ने हुण असुरो की भारी सेना को देखा, तब मातेश्वरी ने शरीर पर बगतर धारण किए सिधुवे राग का उचारण होने लगा, हुणों की सेना को कटार द्वारा धराशाही करने से खून की नदिया चलने लगी और हुणों की सेना का सफाया होने लगा
जब हुणों और महामाया आवड जी में युद्ध हो रहा था तब बड़ी भयंकर ध्वनी सुनाई दे रही थी, अनेको मातेश्वरी के अग्रग्रामी भैरव प्रगट हो गए, हुणों की सेना का नाश हो गया, सिंह पर आरूढ़ होकर हाथ में चक्र लेकर मैया आवड जी अट्टहास करने लगी, ‘हूण सेना नायक तेमड़ा नमक असुर भागने लगा

जब तेमड़ा असुर भागने लगा तो मातेश्वरी आवड जी ने अपना अनेक भुजावो वाला विकराल कालका रुपी शरीर धारण कर, सिंह पर बैठी हुवी अपने भाले से दृष्ट तेमड़ा नमक असुर को दबोच लिया और एक पहाड़ की गुफा में डालकर यही आवड जी ने तेमडा नाम के राक्षस को मारा था, अत: इन्हे तेमडेजी भी कहते है। सातों बहिनों ने अपना आसन तेमडा पर्वत पर जमा लिया, उक्त स्थान को आज तेमडे राय नाम से जाना जाता हे
आवड जी का मुख्य स्थान जैसलमेर से बीस मील दूर एक पहाडी पर बना है।

कहते हैं कि, मैया आवड जी ने जब हिंगलाज धाम गमन किया तो माड़ प्रदेश के राजा देवराज ने तेमड़ा नामक स्थान (पर्वत) पर मन्दिर बनाया व सात रूपों में पत्थर की मूर्ति स्थापित करवाई व उक्त चित्र अंकित करवाये, भक्त जन पूजा अर्चना करने लगे, शुक्ल पक्ष की सातम को बड़ा भारी मेला लगता हे प्रत्येक मास की में अनेको यात्री दर्शन की लिए आते हैं

देवी आवड जी की एक बहिन काठियावाड़ के दक्षिण पर्वतीय प्रदेश में 'तांतणियादरा' नामक नाले के ऊपर अपना स्थान बनाकर रहने लगी। यह देवी भावनगर कि कुलदेवी मानी जाती हैं, ओर समस्त काठियावाड़ में भक्ति भाव से इसकी पूजा होती है।      

तब इनके दर्शनाथ अनेक चारणों का आवागमन इनके स्थान कि और निरंतर होने लगा और इनके दर्शनाथ हेतु लोग समय पाकर यही राजस्थान में ही बस गए। वर्तमान में माड़ प्रदेश में रहेनेवाली चारण जातियों में प्रमुख बारहट, रतनु आदि शाखाओ का उदय आवड जी के समय के बाद हुवा है।
 
जैसलमेर घराने के महाराजा तणु को तणोट स्थान पर दर्शन देकर तनोट माता
जैसलमेर घराने के पूर्व कृष्ण वंशी हिंदू राजा तणू की राजधानी जैसलमेर से तणोट कर प्रजा में सुख चैन करने के लिये, अनेको दूष्टोँ और वन मनुष्यों का संहार किया उन्हें आशीर्वाद दिया, और महामाया के आवागमन से माड़ भूमि धन्य हो गयी, उन्होंने हूणों के आक्रमण से माड़ प्रदेश की रक्षा की। माड़ प्रदेश में आवड़ माता की कृपा से भाटी राजपूतों का सुदृढ़ राज्य स्थापित हो गया। राजा तणुराव भाटी ने तणोट स्थान को अपनी राजधानी बनाया और आवड़ माता को स्वर्ण सिंहासन भेंट किया।   
तनोट माता की मुख्य मूर्ति।
 
राजस्थान के जैलसमेर में बॉर्डर पर स्थित तनोट माता का मंदिर
          महामाया पंजाब प्रदेश के शाशक लाखियार जाम को दर्शन देने पधारी-
पंजाब प्रदेश का के शासक लाखियार जाम आवड़ा माता का भगत था
लाखियार जाम माड़ प्रदेश के, राजालणु को अपने राजधानी अधिकार मे करना चाहता था
मगर वह स्थान राजा तणू के अधिकार मे था। इस बाबत दोनों नरेशों मे आपसी टकव
चल रहा था, लेकिन राजा तणु भी आवड़ा माता का भगत थाइस बाबत दोनों नरेशों मे आपसी टराहट रुकवाते हुवे, जगत जननी ने अदृश्य रूप मेलाखियार जाम की सहायता की, दोनों का सुदृढ़ राज्य स्थापित हो गया।   

स के बाद सातो बहिनों भाई के साथ, भक्तो के हितार्थ अनेक लिलाए करने लगी और अपने पिता को हाथो से भोजन परोसने लगी,
                 
                    विजय राव चुडाला को चूड़ और खांडा बक्सीस किया- 

विजय राव चुडाला

 
 उसके बाद वीझाणोट पधारी और विजय राव चुडाला को चुड़ बगसीस की हाराजा तनुराव ने अपनी मोजुदगी में ही राज्य का उतराधिकार युवराज विजय राज को कर दिया था । विजय राज का विवाह गढ़ जोध के भुटा राव रुद्रसेन की पुत्री मानकुंवर से हुआ पंवार गढ़ पूगल के धारू की पुत्री गढ़ पारकर के राणा सोढा आहड़ा की पुत्री रायकुंवर पड़िहार राणा जीवन की पुत्री , पूरब देश के राजा राठौर लाखन की पुत्री गढ़ बिटेडा के बाराह झाली रामोराजी की पुत्री सुजान दे से हुआ । बाई दीपकंवर थी विजय राज ने राज्य अधिकार प्राप्त करते ही प्राचीन सत्रु वाराह और लंगोड़ा के साथ युद्ध छेड़ दिया और उन्हें परास्त कर दिया । विजय राज बड़े वीर थे ।विजय राज ने अपने नाम से विक्रमी संवत 913 में वीजणोत नामक दुर्ग का निर्माण करवाया ।महाराजा विजयराज ने तनोट में शिवालय का निर्माण तथा विजडासर तालाब का निर्माण करवाया।
                            :: दोहा ::
                 सह हाले पारवती , भूप अनेड़ा  भाल ।
                आयो धणी बन्धवासी , विजड़ासर की पाल ।।
   ::विजय राज और परमारों का युद्ध ::
विजय राज पर परमार वंश के नो राजाओ ने मिलकर आक्रमण किया । घमासान युद्ध हुआ । युद्ध में परमारों की विजय होती देख महाराजा विजय राज तनोटिया के मंदिर में धरना पर बैठ गए ।तब देवी ने प्रसन्न होकर चूड़ और खांडा बक्सीस किया और वरदान दिया की जब तक तेरे हाथ में चूड़ और खांडा रहेगा । तब तक संसार में तुम्हे कोई परास्त नहीं कर सकेगा । जब भी युद्ध होगा देवी का अदीठ चक्र चलेगा और शत्रुओ का संहार कर देगा । और रात को जब सोयेगा तब सवा पांच सेर सोने की चूड़ प्राप्त होगी ।जिससे अपना राज काम चलना । इस रहस्य का किसी को पता नहीं चलने देना । युद्ध के समय घोड़े की नोत पर सुगन चिड़िया के रूप में आकर बेठुंगी । तब तुम्हारी विजय होगी । दुसरे युद्ध में जब परमारों की हर होने लगी तब परमारों ने सोचा इतनी बड़ी सेना के होते हुए भी हार होने जा रही है क्या कारण । तब परमारों ने दो सेनिक स्वामी का भेष कर तनोट गढ़ की पणहारियो के रास्ते जासूसी करने गए । तब पणिहारियो से पता चला की राजा विजयराज से देवी प्रसन्न होकर चूड़ और खांडा दिया है । तब उन्होंने सोचा की इस प्रकार युद्ध करने से जितना मुस्किल है ।तब परमारों ने मिलकर छल से अपना कार्य करने के लिए भटिंडा अधिपति वराह जाती के नरेश अमरसिंह झाला ने अपनी पुत्री हरकंवर का विवाह देरावर के साथ करने का विचार कर नारियल भेजा । भाटी राजा इस षड़यंत्र से बिलकुल अनभिज्ञ थे । अतः इन्होने केवल 800 सरदार आदी सेनिक साथ लेकर भटिंडा चले गए । वहा इनका पहले तो अछा स्वागत हुआ और विवाह भी हो गया परन्तु रात्री में जब विजयराज अपने सेनिकों के साथ सोये हुए थे । पहले तो चूड़ और खांडा चुरा लिए गए उसके बाद दुष्ट वराहो ने सबको एक - एक करके मार डाला । केवल देरावर जो उस समय महलो में थे बच गए । उनको उनकी सास ने गुप्त रूप से एक रायका के साथ ऊंट पर चढ़ा कर भगा दिया । देरावर ने झाला नरेश के प्रोहित देवात की सरन ली जिन्होंने अपनी बुद्धिमता से उनको बचा लिया गया । विद्रोहियों ने भाटियो की राजधानी तनोट पर आक्रमण किया जहा देरावर के वृद्ध दादा तनुराव शत्रुओ से युद्ध करके वीर गति प्राप्त हुए । तीन सो पचास सतिया तनोट पर एक दिन में हुई 
:: दोहा ::
ते सू बड़ो सूमरो लांझो विजे राज ।
माँगण ऊपर हाथड़ा बेरी ऊपर घाव ।।
तब पणिहारियो से पता चला की राजा विजयराज से देवी प्रसन्न होकर चूड़ और खांडा दिया है
  
दुर्ग कोट भूप देरावर पर दया की- फ़िर दुर्ग कोट भूप देरावर पर दया की
फ़िर लुघ्रवे पधारी
इस प्रकार भाटी शासको पर मातेश्वरी की हमेशा दया बनी रही हैं

                  घंटीयाल नामक असुर को मार, घंटीयाल राय की स्थापना- 
घन्टयाली माता
इसके बाद मातेश्वरी ने घंटीयाल नामक असुर को मार, घंटीयाल राय की स्थापना की श्री घंटियाली राय मन्दिर स्थान तनोट मन्दिर से बी. एस. ऍफ़. मुख्यालय से आते समय 10 की. मी प्रूव की और इसी रोड पर हैंजब मातेश्वरी तणोट से पधार रही थी तब इस स्थान के धोरों मे भयंकर वन मानुस असुर रहता था । उसके गले मे बड़ी भयंकर मवाद भरी प्राकुतिक गाठ थी उकत असुर इतना भयंकर था की जब वह चलता तो उसके  शरीर से गाठ टकराने पर बड़ी भरी आवाज निकलती थी वह भोजन की तलास मे प्रत्येक प्राणियो के साथ साथ मनुष्यों को भी खा जाता था।वहा की प्रजा इसके आतंक से दुखी थी । प्रत्येक ग्रामो मे रात्रि को पहरा बैठाया जाता था ज्यादा मनुष्य देखकर वह भाग जाता था। उसे जो भी अकेला मिलता उसे खा जाता था। ऐसे भयंकर देत्य को मैया ने उसकी घंटिया पकड़ कर मार गिराया व वहा के निवासियों ने उसे रेत मे गाड दिया व पास मे मातेश्वरी का मन्दिर बना दिया।उस घंटिवाले असुर को मारने से घंटियाली राय नाम से प्रशिद्ध हुवा ।

तनोट माता की तरह ही इस क्षेत्र घंटयाली गांव में घंटयाली माता की ख्याति है। घंटयाली माता ने भी सैनिकों की सहायता की थी और तनोट माता की तरह ही इनके परिसर में भी दागे गये गोले और बम फटे नहीं। यही कारण है कि भारतीय सैनिक इन मंदिरों के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। घंटयाली माता मंदिर में सुबह शाम की पूजा भी सैनिक ही करते हैं। आस-पास के क्षेत्र में घंटयाली माता की बड़ी ख्याति है, लोग यहां अपनी मुरादें मांगने भी आते हैं।
         मान्यता है कि घंटयाली माता सदैव अपने मंदिर में निवास करती हैं
मान्यता है कि घंटयाली माता सदैव अपने मंदिर में निवास करती हैं और अपने भक्तों की पुकार सुनती हैं। शत्रु ने जैसलमेर से तनोट जाने वाले मार्ग को घंटाली देवी के मंदिर के समीप एंटी पर्सनल और एंटी टैंक माइन्स लगाकर सप्लाई चैन को काट दिया था।
तनोट से लगभग पांच किलोमीटर दूर प्रसिद्ध शक्तिपीठ घंटियाली माता का मंदिर भी स्थित है जिसके बारे में भक्तों की मान्यता है कि तनोटमाता का दर्शन लाभ प्राप्त करने के लिए पहले घंटियाली माता के दर्शन करना आवश्यक है।
पश्चिमी राजस्थान में जैसलमेर से सटे तनोट क्षेत्र स्थित घंटयाली माता मंदिर शक्तिस्थल के रूप में आम श्रद्धालुओं के अलावा भारतीय सैनिकों व अधिकारियों के आस्था स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
मंदिर पर दिन भर सैनिकों का आना-जाना लगा रहता है। इस मंदिर परिसर में सन् 1965 में भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान द्वारा गिराए बम भी देवी के चरणों में नतमस्तक होकर नहीं फटे। ये मंदिर में आज भी रखे हुए है। साथ ही साथ पाक सेना द्वारा इस क्षेत्र में घुसकर मंदिर स्थित अनेक मूर्तियों को खंडित भी किया गया। वे भी मंदिर में रखी हुई है। 1965 की लड़ाई के दौरान घंटयाली माता ने अपने पर्चे भी दिए जिससे सेना व आम नागरिक अभिभूत हो गए।
घंटयाली माता के मंदिर की देखरेख और सुबह शाम पूजा-अर्चना भी सेना के जवान करते हैं। यह मंदिर मातेश्वरी तनोट के दर्शन करने जाते समय 7 किमी पहले रास्ते में पड़ता है। घंटयाली मां के दर्शन अत्यंत ही शुभ माने जाते हैं। घंटयाली माता के मंदिर के बारे में यहां रोचक प्राचीन कथा सुनने को मिलती है। इस संदर्भ में मंदिर परिसर में खंडित मूर्तियों के ऊपर दीवार पर पूरी कथा श्रद्धालुओं को पढ़ने को मिलती है।
इतिहास:
घन्टयाली माता
घंटयाली माता की एक प्राचीन कथा है जो मंदिर की दीवार पर लिखी हुई है। कथा के अनुसार सीमावर्ती गांवों के लोगों पर कुछ लोगों ने अत्याचार करना शुरू कर दिया। गांव के एक परिवार के सभी सदस्यों को अपराधियों ने मार दिया। संयोगवश एक महिला जीवित रह गयी और गांव छोड़कर अन्य स्थान पर चली गयी।
इस दौरान महिला गर्भवती थी और कुछ समय बाद इसने एक पुत्र को जन्म दिया। बड़ा होने पर मां ने अपने पुत्र को सारी घटना बतायी। अपने परिवार वालों पर हुए अत्याचार के बारे में जानकर लड़के ने अत्याचारियों से बदला लेने की ठान ली। यह तलवार लेकर अपने पैतृक गांव लौट आया। रास्ते में घंटयाली माता का मंदिर मिला। यहां माता ने एक छोटी बच्ची के रूप में लड़के को दर्शन दिया और पानी पिलाया। माता ने कहा कि तुम बस एक व्यक्ति को मारना बाकि सब अपने आप मर जाएंगे।
लड़के ने कहा कि यदि ऐसा हो जाएगा तो मैं वापस लौटकर अपना सिर आपके चरणों में चढ़ा दूंगा। माता के आदेश के अनुसार लड़का गांव में पहुंचा तो देखा कि एक बारात जा रही है। उसने पीछे से एक व्यक्ति को मार दिया। इसके बाद सभी लोग आपस में उलझ गये और एक-दूसरे को मारने लगे। लड़का लौटते समय माता के मंदिर में गया और माता को पुकारने लगा। माता प्रकट नहीं हुई तब लड़का अपना सिर काटकर माता के चरणों में रखने के लिए तलवार उठा लिया।

इसी समय माता प्रकट हुई और लड़के का हाथ पकड़ कर बोली 'मैं तो यहीं विराजमान हूं, मैं अपने भक्तों को दर्शन देकर आगे भी कृतार्थ करती रहूंगी।' इस घटना के बाद से पूरे क्षेत्र में घंटयाली माता की प्रसिद्धि फैल गयी।
दूरराज से भी ग्रामीण दर्शनाभिलाषी पहुंचने लगे। धीरे-धीरे मंदिर को दूर-दूर तक फैले रेत के टिब्बों के बीच में भव्य रूप प्रदान किया। फिर तो भारत-पाक सीमा पर तैनात सेना के जवानों और अधिकारियों ने मंदिर में नित्य पूजा-अर्चना करनी शुरू कर दी जो आज भी जारी है।
घंटयाली माता के अद्भूत चमत्कार युद्ध में भी दिखाई दिए। जिससे सभी में इतनी आस्था प्रबल हो उठी कि आज जैसलमेर आने वाले हजारों पर्यटक चाहे वे विदेशी हो या भारतीय घंटयाली माता व तनोट राय के दर्शन किए बगैर नहीं लौटते हैं। मंदिर में तैनात फौज के जवान पूरी निष्ठा व निःस्वार्थ भाव से आने वाले भक्तों की सेवा में कोई कमी नहीं रखते। घंटयाली माता के मंदिर में सभी तरह की सुविधाएं भी मुहैया करवाई गई है। जिससे श्रद्धालुओं को कोई परेशानी नहीं होती।
  
                  भादरिया नामक भाटी के आग्रह पर पधारी - 
 बाद में भादरिया नामक भाटी के आग्रह पर महामाया आवड जी दर्शन देने के लिए पधारी, उक्त स्थान को भादरिया राय नाम से जाना जाता है, जहा भादरिया रायनामक स्थान बन गया है।
श्री भादरिया राय मन्दिर स्थान .       


श्री भादरिया राय मन्दिर

श्री भादरिया राय मन्दिर- स्थान जैसलमेर से करीब 80 की. मी. जोधपुर रोड धोलिया ग्राम से 10 की. मी. उतर की तरफ़ है। उक्त स्थान के पास एक भादरिया नमक राजपूत रहता था उसका पुरा परिवार आवड़ा माता का भक्त था। जिसमे उक्त महाशय की पुत्री जिसका नाम बुली बाई था वह मैया की अनन्य भक्त थी। उसकी भक्ति की चर्चाए सुनकर माड़ प्रदेश के महाराजा साहब पुरे रनिवास सहित उक्त जगह पधारे, बुली बाई से महारानी जी ने साक्षात रूप मे मैया के दर्शन कराने का निवेदन किया। उक्त तपस्वनी ने मैया का ध्यान लगाया, भक्तो के वस भगवान होते है। मैया उसी समय सातो बहने व भाई के साथ सहित पधार गई। सभी मे गद गद स्वर मे मैया का अभिवादन किया तब रजा ने मैया से निवेदन किया मैया आप सभी परिवार सहित किस जगह विराजमान है? तब मैया ने फ़रमाया मे काले उचे पर्वत पर रहती हू। इस प्रकार मैया वहा प्रकट हो गई, मैया के दर्शन पाने से सभी का जीवन धन्य हुवा। उसी स्थान पर भक्त भादरिये के नाम से भादरिया राय मन्दिर स्थान महाराजा की प्रेणना से बनाया गया ।

               काले डूगर राय माता जी मन्दिर जैसलमेर (काले डूगर राय मन्दिर)
काले डूगर राय माता जी मन्दिर जैसलमेर
 यह मन्दिर जैसलमेर शहर से 45 की.मी उतर दिशा मे एक पहाड़ी की चोटी पर है। इस पहाड़ी का रंग काला होने के कारण इस मन्दिर को काले डूगर राय के नाम से जाना जाता है।जब माड़ प्रदेश के महाराजा भादरिये से जब वापिस पधारे तब मैया के कथानुसार इस पहाड़ी पर पधार कर मैया के नाम से एक छोटे से मन्दिर की स्थापना कर दी थी जो कालांतर मे अनेको भक्तो के सहयोग से भव्य मन्दिर बन गया है। जैसलमेर व आसपास के ग्रामो का विशेष श्रद्धा का केन्द्र है। उस समय माड़ प्रदेश एक जंगली एरिया था उबड़ खाबड़ इलाका था, हालाँकि मैया उस समय शशरीर इस धरा पर विराजमान थी।लेकिन मैया एसे पर्वतो मे जाकर तपस्या लीन हो जाती थी । सभी को दर्शन दुर्लभ थे सिर्फ़ धर्मात्मा राजा या अनन्य भक्तो के वसीभूत होकर मैया को शशरीर उस समय पधारना पड़ता था, मैया कभी नभ डूगर, कभी काले डूगर, कभी भूरे डूगर इस प्रकार अनेको पर्वतो पर निवास स्थान था । जिस जगहों का भक्तो का मालूम हुवा वहा तो स्थान बना दिए बाकि जगहों का आज तक पता नही है।
                               
                                 पनोधरराय माता मंदिर -
पनोधरराय ,माता मंदिर
 
आवड़ा माता का यह स्थान मोहनगढ़ से 6 की. मी. उतर की और सिथत है। उसके चारो और रेत के टीले है। पुराने समय मे इस जगह पर एक कच्चा मन्दिर था उसके पास एक खेजड़ी का पुराना वृक्ष था जिसके निचे पानी का कुवा था यहाँ पर पुराने समय मे लाड जाती का एक मुसलमान भेड बकरिया चराया करता था व खेजड़ी वृक्ष के खोखे खाया करता था, एक दिन अचानक खोखे लेते हुवे पैर फिसलने से कुवे मे गिर गया, कुवा बहोत गहरा था। फ़िर भी वही व्यक्ति मुसलमान होते हुवे उक्त देवी का स्मरण मन ही मन करने लगा उसके घरवालो ने चार पाँच दिन तक खोज ख़बर ली आख़िर फिरते हुवे कुवे के पास आए तो उसने आवाज दी मे सकुशल पाच दिन से कुवे मे बता हू, खाने के लिए मैया खेजड़ी के खोखे डाल रही है। पीने को पानी है मुझे इस खेजड़ी वाली मैया ने बचाया है। उसको बहार निकला गया वह शुद्ध भावः से मैया की वंदना करने लगा, कहते है उक्त मुसलमान का नाम पनु था, उसका मैया ने उद्धार किया इसलिए उक्त स्थान को पनोधरी राय के नाम से लोग पुकारने लगे, वर्तमान मे बड़ा भव्य मन्दिर बना हुवा है।
                   
                 महामाया आवड जी अंत में देग राय का स्थान पर पधारी-
जैसलमेर ,श्री देग राय मन्दिर
देगराय मन्दिर - यह स्थान जैसलमेर से 50 की. मी. देवीकोट साकड़ा रोड़ पर है। यहाँ एक तालाब के ऊपर बड़ा रमणीक मन्दिर है। इस जगह मातेश्वरी ने सहपरिवार निवास किया था, एक दिन एक असुर रूपेण भेंसे को काट कर आवड जी ने देग नामक बर्तन में पकाया था इसी कारण उक्त स्थान देग राय कहलाता है। जब भेंसे के मालिक ने मैया के भाई महरखे से पूछा तो उसने सत्य बात बता दी इससे कुपित होकर देवी ने भाई को श्राप दे दिया व उस भेंसे की साब्जी को चंदले मे तबदील कर दिया व उस महाशय के भ्रम का निवारण हुवा, कुछ जानकर लोग इस दुर्घटना का जिक्र अन्य जगह का करते हैं लेकिन मैया ने भेंसे का भक्षण इसी जगह किया था कहते हैं देग नामक स्थान पर महामाया आवड जी ने भेंसे का भक्षण कर के एक साबड़ बुगा नामक असुर को मार गिराया और उसका रक्त पान किया थाइस प्रकार अंत में देग राय का स्थान है। इस प्रकार उक्त स्थान पे भेंसे की बलि देने के कारण अन्य मंदिरों मे भी भेंसे, बकरे की बलि चढाई जाने लगीमनुष्य की उदर पूर्ति व मनोकामना दोनों सिद्ध होती हैं

जब भेंसे के मालिक ने मैया के भाई महरखे से पूछा तो उसने सत्य बात बता दी, इससे कुपित होकर देवी ने भाई को श्राप दे दिया था, मैया के श्राप से भाई का पैणा सर्प ने दस लिया था, महामाया ने अपने तपोबल से सूर्य को लोहड़ी रूपी चादर की धुंध से ढक दिया था, मैया ने भी मर्यादा पुरषोतम श्री राम की तरह मनुष्य लीला के लोकिक कार्य इस भाती किए थे देव अगर देविक साधना से चाहते तो तुंरत जीवन दे देते, लेकिन संसारियों को भ्रम मे डालने ले लिए उपचार औषधि से जीवन दान विधि बताई कहते हैं कि, जब मातेश्वरी के भाई को पणे सर्प ने डस लिया तब सभी बहिनों ने मैया आवड जी से सूर्य रोकने और सबसे छोटी बहन लोगदे को औषधि लाने भेजा, औषधि लाने, मैया ने बड़े वेग से पुरे भूमंडल में ढूंढ़कर सोले पहर यानि दो दिन में पुरा संसार का भ्रमण किया, इस प्रकार वापिस आते समय पैर में चौट लग गई, इस कारण उस बहिन को खोडियार नाम से पुकारा जाता है,कहते हैं कि, सूर्य की किरणों के कारण पेणे सर्प का डसा ख़त्म हो जाता है, इधर आवड माता ने दो दिन तक अपनी लोहड़ी से आकाश में एसा धुंध कोहरा फेला दिया जिससे सूर्य की किरणे धरती पर नही पहुची, किसी को भी सूर्य के दर्शन नही हुवे, यह मातेश्वरी का तपोबल था, महामाया ने भगवान् भास्कर की मर्यादा भंग नही की, जिस प्रकार कभी कभी ज्यादा धुंध होने से सूर्य दिखाई नही देता इसी क्रम में मैया ने प्रकुति की देन से पृथ्वी और सूर्य के बिच आवरण छाया रहा और इस प्रकार माया को देख कर सूर्यदेव महामाया की वंदना करने लगे इस प्रकार उक्त स्थान पे भेंसे की बलि देने के कारण अन्य मंदिरों मे भी भेंसे, बकरे की बलि चढाई जाने लगीमनुष्य की उदर पूर्ति व मनोकामना दोनों सिद्ध होती हैं। हें  
कहते हैं इस प्रकार महामाया के माड़ प्रदेश में अनेको चमत्कार होते देख कर इन तपोबली विभूतियों के आगे सभी जय जय करने लगे तब मैया भक्तो का दुःख दूर करने और असुरो की आहुतिया लेने लगी इस प्रकार उक्त स्थान पे भेंसे की बलि देने के कारण अन्य मंदिरों मे भी भेंसे, बकरे की बलि चढाई जाने लगीमनुष्य की उदर पूर्ति व मनोकामना दोनों सिद्ध होती हैं
कहते हैं कि, इस प्रकार से महामाया ने अपने हाथ में त्रिशूल धारण कर शीश पर छत्र और शत्रुओ का संधार करने के लिए सिंह पर आरूढ़ होकर शिव का स्मरण कर दृष्टो का नाश करने को तेयार हो गई इस प्रकार उक्त स्थान पे भेंसे की बलि देने के कारण अन्य मंदिरों मे भी भेंसे, बकरे की बलि चढाई जाने लगीमनुष्य की उदर पूर्ति व मनोकामना दोनों सिद्ध होती हैं।  

इस प्रकार से महामाया दृष्टो का संहार करने रवाना हो गई तब इसी सुशेभित हो रही थी जैसे घटो टॉप बादलो में भास्कर से भी तेज अदभुत था,गले में मुक्तिमान मणि प्रकाशन मान थी, इस रूप को निहारकर भगवान सूर्य नमस्कार कर रहे थे, उनके हाथ में तलवार ढाल खुफर और लाल रंग की ध्वजा लहरा रही थी इस प्रकार उक्त स्थान पे भेंसे की बलि देने के कारण अन्य मंदिरों मे भी भेंसे, बकरे की बलि चढाई जाने लगी
मनुष्य की उदर पूर्ति व मनोकामना दोनों सिद्ध होती हैं।

कहते हैं कि, उस समय महामाया के दिव्य आभूषण धारण किए हुवे थे जिसमे सोने का कवच माणक हीरो से जडित मुगट गोरे हाथो में नग जडित व रुद्राक्ष की माला व मुद्रिका व अन्य हाथो में पहनी हुवी झुमरी की लड़े बड़ी ही सुंदर शोभायण हो रही थी, मातेश्वरी ने सिंह पर आरूढ़ होकर पृथ्वी पर अनेको दृष्टो भूतो का नाश किया, प्रजा में राम राज्य स्थापित किया इस प्रकार उक्त स्थान पे भेंसे की बलि देने के कारण अन्य मंदिरों मे भी भेंसे, बकरे की बलि चढाई जाने लगीमनुष्य की उदर पूर्ति व मनोकामना दोनों सिद्ध होती हैं।

कहते हैं कि, अब मातेश्वरी ने अपनी लीला से लोकिकता से चौथे आश्रम में प्रवेश किया है अपने शरीर में सफ़ेद दाढ़ी मुछ बना ली है कानो में सफ़ेद शीष पर आभूषण भी सफ़ेद धारण किए है जो मोती की तरह दमक रहे है।

कहते हैं कि, तेमड़ा नामक स्थान पर अनेको वाघ यंत्रो की ध्वनी होने लगी, ढोल, झीझा, चंग आदि वाजे बजने लगे
विक्रम संवत 999 में सातों बहनों ने तणुराव के पौत्र देवराज और सिद्ध, भक्तों, ब्राह्मणों, चारणों, राजपूतों और माड़ प्रदेश के अन्य लोगों को बुलाकर कहा कि आप सभी लोग सुख शांति से आनंदपूर्वक अपना जीवन बिता रहे हैं, अत: हमारे अवतार लेने का उद्देश्य पूर्ण हुआ।
इतना कहकर सभी बहनों ने तारंग शीला पर बैठकर पतंग की तरह शशरीर उडान भरी और पश्चिम में हिंगलाज धाम की ओर देखते हुए अदृश्य हो गईं। व तेमड़ा धाम को हिंगलाज का दूसरा दर्जा प्रदान किया  

          तेमडे नामक स्थान पर समय समय पर मैया के अनेक रूपों में दर्शन-
यह स्थान जैसलमेर शहर से 25 की. मी. दक्षिण की तरफ़ बना हुवा है। इस स्थान को दूसरा हिंगलाज स्थान के नाम से जाना जाता है। मुख्यमन्दिर जैसलमेर के तेमड़ पर्वत पर हैं। कहते हैं कि, उक्त तेमडे नामक स्थान पर समय समय पर मैया के अनेक रूपों में मातेश्वरी के दर्शन होने लगे............  
सोहन चिड़िया
सर्वप्रथम अग्नि जोत के दर्शन होने लगे फ़िर
नाग नागनी के दर्शन होने लगे ,
सुगन चिडिया के दर्शन होने लगे ,
फ़िर समली के दर्शन होने लगे
कभी सिंह के दर्शन होने लगे व अंत में
छछुदरी के दर्शन होने लगे
राजस्थान में ‘‘सुगनंचिड़ी’’ को आवड़ माता का रूप माना जाता हैं।
कहते हैं कि, मैया ने अपना विराट रूप धारण करते हुए; कही पर डुररेचियों, नागणेचियों आदि रूपों में जगह जगह प्रत्येक ग्रामो नगरो में स्थापित होकर भक्तो का दुःख दूर करने लगी !
श्री आवड़ जी की आरती
जय गिरवर राया, मैया जय गिरवर रायाl
आवड़ आदि सगती, मामड़ घर आया ! ॐ जय गिरवर...

माड़ धारा बिच माजी ,चारण कुळ चाया!
आप अवतरया अम्बे, साँसण सुरराया! जय गिरवर ....

सिंध मैं आढ़ सगती, समंदर सुकवाया!
पेट माय परमेश्वरी, महासागर पाया! ॐ जय गिरवर...

भुजंग डस्यो निज भ्राता, निरी अकला पाया!
भोर उगत भगवती, लोवड़ लुकवाया!ॐ जय गिरवर...

देत मार डाढाली,गोरी खो गड़वाया!
आप सिला दे आडी, थान ऊपर थाया! ॐ जय गिरवर...

बकर मद बाराऊ, छिक आनंद छाया!
चडत पूज नित चंडी,भैसा मन भाया! ॐ जय गिरवर...

मेवा चडत मिठाई, शुद्ध घ्रत सवाया!
जगमग जोत जगती, तोरी महमाया ! ॐ जय गिरवर...

दरश दिया दुःख भागे,करज्यो देख दया!
अम्ब कहे नित आनंद, गुण आवड़ गाया! ॐ जय गिरवर... 
माता ने हर्षित होकर सात रूपों को एक रूप में समाहित करते हुवे महामाया श्री करणी के रूप में अवतार धारण
मुख्य मंदिर के समीप ही भगवती श्री करणी जी के जन्म स्थल पर स्मारक का निर्माण अभी कुछ समय पूर्व हुआ है
श्री करणी माता की इष्ट देव तेमड़ा जी  थी। श्री करणी जी के मंदिर के पास तेमड़ा राय देवी के मंदिर से कुछ दूर नेहड़ी नामक दर्षनीय स्थल हैं जहा करणीजी देवी सर्व प्रथम रही है।

माता ने हर्षित होकर सात रूपों को एक रूप में समाहित करते हुवे महामाया श्री करणी के रूप में अवतार धारण करने की मेहाजी को तथा अस्तु कहते हुए आशीर्वाद वचन कहा । आवड़ माता ने अपने भौतिक शरीर के रहते हुए विक्रम संवत 828 ईस्वी में, तनोट में अपनी स्थापना खुद की थी-
विक्रम संवत 828 ईस्वी में आवड़ माता ने अपने भौतिक शरीर के रहते हुए यहाँ अपनी स्थापना की।
विक्रम संवत 999 में सातों बहनों ने तणुराव के पौत्र देवराज और सिद्ध, भक्तों, ब्राह्मणों, चारणों, राजपूतों और माड़ प्रदेश के अन्य लोगों को बुलाकर कहा कि आप सभी लोग सुख शांति से आनंदपूर्वक अपना जीवन बिता रहे हैं, अत: हमारे अवतार लेने का उद्देश्य पूर्ण हुआ।
इतना कहकर सभी बहनों ने तारंग शीला पर बैठकर पतंग की तरह शशरीर उडान भरी और पश्चिम में हिंगलाज धाम की ओर देखते हुए अदृश्य हो गईं। व तेमड़ा धाम को हिंगलाज का दूसरा दर्जा प्रदान किया 
by-
पेपसिँह राठौङ
आवड़ माता
तणू भूप तेडाविया, आवड़ निज एवास।
पूजा ग्रही परमेश्वरी , नामे थप्यो निवास ।।
सायरा के पश्चिम में आवड़-सावड़ के पर्वत स्थित है।
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

9 comments:

  1. जय मां आवड thank you hkm ... Maa apko ye sakti or de

    ReplyDelete
  2. Beautiful.. mataji ki kripa Aap per sadaiv bani rahe.
    G.S.Charan

    ReplyDelete
  3. Bhai...aapse mujhe bahot badhiya jankari mili...meri kuldevi bhi ma hinglaj hai...mai aapse prerit ho kar ek kitab likhunga jisme Mata hinglaj ke sare awtaro ke bare me likhunga...

    ReplyDelete
  4. आपने बहुत अच्छी जानकारी माँ आवड के बारे में दी है आपके इस पुनीत कार्य हेतु धन्यवाद। लेकिन भाट एवं चारण दोनों अलग-अलग जातियां है ,अगर आप खानदानी राजपूत है तो चारण सरदारों का महत्व समझते होंगे, इसलिए अपनी पोस्ट में सुधार करें और भाटो को चारणों के साथ नहीं जोड़ें और अगर आपको जानकारी नहीं है तो पहले जानकारी अर्जित करें

    ReplyDelete
  5. आपकी इस अदभुत जानकारी के लिए धन्यवाद। परन्तु चारण और भाट जाती को एक बताकर लोगों को भ्रमित ना करे। चारण देवी पुत्र कहलाए गए है। रामायण जैसे कई पुराने ग्रंथों में चारण जाती का वर्णन हुआ है। जिसमें चारणो की गिनती तीनों लोक के लोगों में की गई है। राजस्थान में चारण कवि होते थे और राजाओं के साथ कई युद्ध में भी जाते थे। चारणो के घर जन्मी बेटियों को आज भी देवी स्वरूप माना जाता है। अगर आप राजपूत या चारण जाती के जानकार हैं तो आपको ऐसे चारण और भाट जाती को एक बताना शोभा नहीं देता। कृपया अपनी जानकारी पूरी करे। और इस blog में सुधार करे। धन्यवाद

    ReplyDelete