श्री
करणी माता देशनोक (भगवती श्री करणी जी)
प्रथम
धामः सुवाप- सुवाप गाँव मांगळियावाटी क्षेत्र, तहसील फलौदी, जिला-जोधपुर में स्थित है। यह गाँव मेहोजी मांगळिया द्वारा किनिया शाखा के
चारणों को सांसण (स्वशासित) के रूप में प्रदत्त किया गया था। पूर्व पुरूष किनिया
जी की नौवीं पीढ़ी में मेहोजी किनिया हुए है यथा- (1) मेहा (2)
दूसल (3) देवायत (4) रामड़
(5) भीमड़ (6) जाल्हण (7) सीहा (8) करण और (9) किनिया।
भगवती श्री करणी
जी का अवतरण -
इक्कीस महीने समाप्त होने पर विक्रमी संवत 4414 की आश्विन
शुक्ल सप्तमी (शुक्रवार 3 अक्तूबर 1387 ) उनका जन्म राजस्थान के जोधपुर में जिल के फ्लोदी के निकट सुवाप गांव में ,मेहाजी चारण की धर्मपत्नी देवलदेवी के गर्भ से को भगवती श्री करणी जी का अवतरण हुआ।
“आसोज मास उज्जवल पक्ष सातम शुक्रवार।
चौदह सौ चम्मालवे करणी लियो अवतार।।
श्री करणी जी
सात बहनें थी -यथा-
1-लालबाई, 2-फूलबाई, 3-केसरबाई, 4-गेन्दबाई, 5-सिद्धिबाई,
6-रिद्धिबाई और 7-गुलाबबाई।
श्री करणी जी के
इनके दो भाई भी हुए - श्री करणी जी के इनके दो भाई भी हुए जिनका नाम क्रमशः सातल एवं सारंग था।
भगवती श्री करणी जी का जन्म नाम रिद्धिबाई था परन्तु आपकी दिव्य करणी एवं अलौकिकता
की वजह से करणी नाम से विख्यात हुए।
चारण जाति मैं अवतार-
चारण जाति शक्ति उपासको मैं एक मुख्य जाति है! इस जाति के व्यक्ति को
दूसरी जातियाँ देवी-पुत्र के नाम से संबोधित करती है! यही कारण है कि महाशक्ति को
अवतार लेने के लिए चारण जाति ही अनुकूल जान पड़ी! चारण जाति मैं देवी के अनेक
अवतार हुए! राजस्तान मैं देवियो की जो सामान्य रूप से स्तुति की जाती है, उनमे नॉ लाख लोवडीयाल पद का व्यवहार किया जाता है! जिसका तात्पर्य है कि
देवी के आज तक साधारण और असाधारण कुल नॉ लाख अवतार हुए है! इसके अलग चौरासी चारणी
पद का भी व्यवहार होता है! इससे यह पता चलता है कि चारण जाति मैं महाशक्ति के 84 अवतार हो चुके है!
चारणों कि उत्पत्ति कि तरह इनके देवी-देवताओं के सम्बन्ध मैं भी अनेक
लोक गाथाए प्रचलित है!
हिंगलाज देवी-
एक लोक गाथानुसार चारणों की प्रथम कुलदेवी हिंगलाज थी, जिसका निवास स्थान पाकिस्तान के बलुचिस्थान प्रान्त मैं था! हिंगलाज नाम
के अतिरिक्त हिंगलाज देवी का चरित्र या इसका इतहास अभी तक अप्राप्य है हिंगलाज
देवी से सम्बन्धित छंद गीत चिरजाए जरुर मिलती है प्रसिद्ध है किसातो द्वीपों मैं
सब शक्तियां रात्रि मैं रास रचाती है और प्रात:! काल सब शक्तियां भगवती हिंगलाज के
गिर मैं आ जाती है-
"सातो द्वीप शक्ति सब रात को रचात रास !
प्रात: आप तिहु मात हिंगलाज गिर मैं !!
भगवती हिंगलाज ने आवड
देवी के रूप मैं द्वितीय अवतार धारण किया-
भगवती हिंगलाज देवी सूर्य से भी अधिक तेजस्वी है, और स्वेच्छा से अवतार धारण करती है! इस आदि शक्ति ने आठवी शताब्दी मैं
सिंध प्रान्त मैं मामड़ (मम्मट) के घर मैं आवड देवी के रूप मैं द्वितीय अवतार धारण
किया! ये सात बहिने थी-1-आवड, 2-गुलो,3-
हुली, 4-रेप्यली, 5-आछो,
6-चंचिक, और 7-लध्वी! ये
सब परम सुन्दरिया थी! कहते है कि इनकी सुन्दरता पर सिंध का यवन बादशाह हमीर सुमरा
मुग्ध था इसी कारण उसने अपने विवाह का प्रस्ताव भेजा पर इनके पिता के मना करने पर
बादशाह ने उनको कैद कर लिया यह देखकर छ: देवियाँ टू सिंध से तेमडा पर्वत पर आ गई!
एक बहिन काठियावाड़ के दक्षिण पर्वतीय प्रदेश मैं 'तांतणियादरा'
नामक नाले के ऊपर अपना स्थान बनाकर रहने लगी! यह भावनगर कि कुलदेवी
मानी जाति हैओर समस्त काठियावाड़ मैं भक्ति भाव से इसकी पूजा होती है!
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सुवाप के वर्तमान भव्य मंदिर स्थल |
आवड देवी ने तेमडा पर्वत को अपना निवास
स्थान बनाया -
जब आवड देवी ने तेमडा पर्वत को अपना मुख्य निवास स्थान ,बनाया
जैसलमेर से 20 (बीस) मील दूर एक पहाडी
पर बना है, तब इनके दर्शनाथ अनेक चारणों का आवागमन इनके
स्थान कि और निरंतर होने लगा और इनके दर्शनाथ हेतु लोग समय पाकर यही राजस्थान मैं
ही बस गए इन्होने तेमडा नाम के राक्षस को मारा था, अत: इन्हे
तेमडेजी भी कहते है! आवड जी का मुख्य स्थान जैसलमेर से बीस मील दूर एक पहाडी पर
बना है!
पन्द्रहवी शताब्दी मैं राजस्थान अनेक छोटे छोटे राज्यों मैं विभक्त
था! जागीरदारों मैं परस्पर बड़ी खिचातान थी और एक दूसरे को रियासतो मैं लुट खसोट
करते थे, जनता मैं त्राहि त्राहि मची हुई थी! इस कष्ट के
निवारणार्थ ही महाशक्ति हिंगलाज ने सुआप गाँव के चारण मेहाजी की धर्मपत्नी
देवलदेवी के गर्भ से श्री करणीजी के रूप मैं अवतार ग्रहण किया!
"आसोज मास उज्जवल पक्ष सातम शुक्रवार !
चौदह सौ चम्मालवे करणी लियो अवतार !!
जन श्रुतियों और चयोगीतानुसार स्पष्ट है किश्री करणीजी अनेक आलोकिक
कार्य किये!
मारवाड़ मैं राव जोधा कि शक्ति स्थपित कर अपने ही कर कमलों के द्वारा
जोधपुर के किले की नींव रखी! राव बीका ने करणीजी के आशीर्वाद से ही जात एवम
मुसलमानो पर विजय प्राप्त कर बीकानेर राज्य की स्थापना की! मझधार मैं पड़ी नौका को
किनारे लगाकर चित्तौड़ के सेठ झगडूशाह को उबारा!
अपने मृत पुत्र लाखण के प्राण यमराज से ले कर आई और उन्हें पुनः जीवित
किया!
उनके पिता
मेहाजी हिंगलाज माँ के भक्त थे -
उनके पिता मेहाजी हिंगलाज माँ के भक्त थे(हिंगलाज
माता मंदिर नाम: नानी का मंदिर निर्माण काल :अति प्राचीन, देवता: हिंगलाज माता वास्तुकला:
स्थान: मकरान तटीय क्षेत्र,ल्यारी जिला-कराची से ६० कि.मी दूर बलूचिस्तान , पाकिस्तान एक
लोक गाथानुसार चारणों की प्रथम कुलदेवी हिंगलाज थी,जिसका
निवास स्थान पाकिस्तान के बलुचिस्थान प्रान्त में था।).
उन्होंने
पाकिस्तान में स्थित हिंगलाज शक्तिपीठ में पूरी रात प्राथना की के उनका नाम हमेशा
अमर रह,सुबह
आवाज सुनाई दी तथास्तु (वेसा ही हो).।।
देवलबाई को प्रसव से पहेले स्वप्न –
एक रात देवलबाई
को प्रसव से पहेले स्वप्न आया के उनके यहाँ माँ दुगा काअंश जनम लेंगे उहने पूरी
बात परीवारको बतायी लेकीन सभीने हलके में लीया. करनीमाँ के साथ उनकी चाची बेठी हई
थी तब माने चमतकार से हाथ ठीक कर दीया तभीसे माँ का नाम करणी पड़ा. एक बार उनके
पिता को सापने काट लीया तो माँ ने उनके जख्म पे हाथ गुमाया और उनका विष निकल गया.
वोह चमत्कार सुन रावसेखाजी उनसे उनकी जीतके लीए आशीवाद लिए थे.
करणी माता
का विवाह सथिका गाँव जाके राव, के पुत्र देवाजी से विवाह -
करणी माता के मातापिता वृद्ध हो चुके थे उन्हें करणी माँ के विवाह
की चिंता लगी रहती थी.तो माता खुद सथिका (साठीका) गाँव, जो बीकानेर राज्य में अवस्थित था, के राव केलु जी बीठू के पुत्र कुंवर देपाजी (देवाजी)
के साथ हुआ था से विवाह का सुजाव दिया,उनके
विवाह बाद जब बारात सथिका लोट रही थी तब सभी बारात को रास्ते में प्यास लगी लेकिन
कही भी पानी नहीं था तब माता ने जहा जहा रेत में संकेत किये वहा पानी मिला तो
देवाजी घोड़े से उतरके माँ की पालखी के पास जाकर अंडर देखा तो माँ करनी शेर के शाथ
बेठी हुई थी तो देवाजी डर गए माने मानव रूप में आकर उन्हें बताया की वोह दुर्गा
रूप हे। , किशोरवय
में मां करणी का विवाह के उपरांत ईश्वर भक्ति में निमग्न रहती थीं। फलत:, ईश्वरीय अनुकम्पा से, जो दैवीय शक्तियां उनके अंतस्थ
में समाहित हो गई थीं, उनके दिव्य आलोक में असहाय भक्तों की
विपदाओं का निदान निर्लिप्त भाव से होता रहता था।
सथिका गाँव के पास कालुजा गाँव में है करणीसागर-
सथिका गाँव के
पास कालुजा गाँव है वहा के लोगो ने पानी की समस्या हल करने को माँ से अनुरोध किया
और माने वहा पानी लाया वोय आज भी करणीसागर के नाम से मोजूद हे। पिता और पति देवाजी का निधन –
1443 ई. में उनके पिता और 1454 ई उनके पति देवाजी का निधन हो गया था।माता देशनोक के पास की गुफा में
उपासना करती थी ।
ज्योतिलीन –
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जाळ का प्राचीन
पेड़ आज भी हरा-भरा है उसके पास छोटा चबूता बना हुआ है जिस पर भगवती की मूर्ति
स्थापित है
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इस प्रकार अनेक अलोकिक कार्य करती हुई संवत 1595 छेत्र शुक्ल नवमी, देह ज्योतिलीन हुई उनके भौतिक
देह त्यागने के सम्बन्ध मैं ये दोहा प्रचलित है! -
"वर्ष डेढ़ सौ मास छ: दिन उपरांत दोय!
देवी सिधाया देह सूं, जगत सुधारण जोय !!
मंदिर
निर्माण स्थल सूत्रपात भगवती श्री करणी जी जन्म स्थल पर स्मारक सुवाप-
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मुख्य मंदिर के समीप ही भगवती श्री करणी जी के जन्म स्थल पर स्मारक का निर्माण अभी कुछ समय पूर्व हुआ है |
सुवाप के
वर्तमान भव्य मंदिर निर्माण स्थल पर 18वीं शताब्दी में जोधपुर के महाराजा मानसिंह जी के दीवान इन्द्रराज सिंघवी
ने एक कमरा बनवाकर सूत्रपात किया था। इन्द्रराज सिंघवी महाराजा मानसिंह जी की सेना
का संचालन करते हुए जा रहे थे, उसे इस स्थान पर चमत्कार हुआ।
इसलिए जैन मतावलम्बी होते हुए भी दीवान इन्द्रराज सिंघवी ने यहां करणी जी का मंदिर
बनवाया। सुवाप के वर्तमान भव्य मंदिर की यह आधार शिला थी। मंदिर में माँ करणी जी
की भव्य प्रतिमा स्थापित है। अब इस मंदिर को भक्तों ने निर्माण द्वारा अत्यन्त
भव्य और गरिमापूर्ण बना दिया है।
मुख्य मंदिर के
समीप ही भगवती श्री करणी जी के जन्म स्थल पर स्मारक का निर्माण अभी कुछ समय पूर्व
हुआ है। इन्द्रराज सिंघवी द्वारा मंढ़ निर्माण के पश्चात कालान्तर में वकील श्री सुखदेव
जी किनिया ने जन सहयोग से विशाल मंदिर का निर्माण सम्पन्न कराया। श्री सुखदेव जी
किनिया के पूर्व पुरूष सुवाप के ही थे। जोधपुर महाराजा ने उन्हें पोपावास गाँव
प्रदान किया था। जीवन के सन्ध्याकाल में श्री सुखदेव जी किनिया ने अपने पूर्वजों
की मातृभूमि एवं सामाजिक गौरव के उत्थान हेतु निष्ठापूर्वक जो अथक सत्प्रयास किया
है वह सदैव चिरस्मरणीय रहेगा। उन्होनें अपनी वृद्धावस्था की परवाह न करते हुए
चारणों के गाँव-गाँव घूमकर जन सहयोग से धन एकत्रित किया। इस कार्य में सुवाप के
गोविन्ददान जी के पुत्र श्री मेघदान जी किनिया ने भी भरपूर सहयोग प्रदान किया
जिससे यह भव्य भवन निर्मित हो पाया। विगत कई वर्षो से जयपुर के डॉ. गुलाबसिंह जी
निरन्तर इस स्थान को दिव्य, सुन्दर एवं वैभव पूर्ण बनाने का प्रयास कर वे माँ करणी जी को हार्दिक
श्रद्धांजली अर्पित कर रहे हैं।
श्रद्धा की सजीव प्रतीक शेखे की जाळ जहा
पूगल का अधिपति राव शेखा भाटी ने आशीर्वाद प्राप्त किया-
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श्रद्धा की सजीव प्रतीक शेखे की जाळ |
सुवाप में
श्रद्धा की सजीव प्रतीक शेखे की जाळ खड़ी है। ज्ञात हो कि पूगल का अधिपति राव शेखा
भाटी एकबार अपने शत्रुओं पर सेना सहित चढ़ाई कर मुहिम पर जा रहा था। सुवाप की सीमा
में प्रवेश करते ही उसे करणी जी के दर्शन हुए। उस समय करणी जी अपने पिता मेहाजी के
लिए भाता (भोजन) लेकर करनेत खेत जा रही थी। राव शेखा ने करणी जी का परिचय प्राप्त
कर सेना सहित ऊँठ-घोड़ो से उतर कर अपनी पगड़ियां करणी जी के चरणों में रख आशीर्वाद
प्राप्त किया। राव शेखा ने प्रसाद माँगा। करणी जी ने राव शेखा के 140 सवारों को दही और रोटी से
तृप्त कर दिया और उनके पास दही-रोटी यथावत रही। उस स्थान को शेखे की जाळ कहा जाता
है। जाळ का प्राचीन पेड़ आज भी हरा-भरा है, उसके पास छोटा
चबूता बना हुआ है जिस पर भगवती की मूर्ति स्थापित है। नवरात्रि में मुख्य मंदिर से
शोभायात्रा शेखे की जाळ आती है। इस शोभायात्रा में हजारों हजार स्त्री-पुरूष
सम्मिलित होकर मां की जय-जयकार करते हैं। सुवाप का यह बड़ा उत्सव है।
करणी
जी आवड़ माता के परम उपासक थे –
करणी जी आवड़
माता के परम उपासक थे। आपने सुवाप में बाल्यावस्था में आवड़ जी के मन्दिर का अपने
हाथों से निर्माण किया। उसमें आप स्वयं पूजन-भजन करते थे। यह लघु पावन मन्दिर आज भी
इतिहास को समेटे यथावत खड़ा है सुवाप में। इस ऐतिहासिक मंदिर की सुरक्षार्थ इसके
वास्तविक स्वरूप को यथावत रखते हुए परकोटे एवं आर.सी.सी. की छत एवं विशाल आँगन का
नवनिर्माण भक्तों द्वारा सम्पन्न करवाया गया है।
श्री करणी जी आदि शक्ति आवड़ जी के अवतार थे। करणी
जी बचपन में ही आवड़ जी की पूजा-अराधना करते थे। उन्होनें स्वयं अपने हाथों से आवड़
माँ का छोटा मंदिर (मंढ़) बनाया था जिसमें वे ज्योति-पूजा इत्यादि करते रहते थे। यह छोटा सा पवित्र
मंढ़ आज भी छः शताब्दी बीत जाने के बाद भी यथावत खड़ा भगवती आवड़ जीऔर करणी जी की
भक्ति का सन्देश देता है।
करणी जी महाराज के सुवाप निवास काल के अन्य
निम्नलिखित परचे अत्यन्त प्रसिद्ध हैः-
पिता को जीवनदानः-
 |
करणी माता का अद्भुत मंदिर इस मंदिर को देवी दुर्गा से जुड़े प्रमुख मंदिरों में से जाना जाता है। |
वर्षाऋतु में
करणी जी के पिता श्री मेहोजी खेत पर कार्य कर घर लौट रहे थे। रास्ते में हरे घास
मेंभंयकर जहरीला साप बैठा था। अनजाने में मेहोजी
किनिया का पैर सांप पर पड़ गया। सांप ने तत्काल मेहोजी को डंक मारा। सांप के जहर से
मेहोजी चेतनाहीन होकर गिर पड़े। मेहोजी के साथ के व्यक्तियों ने उन्हें उठाकर घर
पहुँचाया, घर में कोहराम मच गया। करणी जी को जैसे ही ज्ञात हुआ तो उन्होनें मेहोजी
के सर्पदंश वाली जगह अपना अमृत कर फेरा। हाथ का स्पर्श होते ही मेहोजी में पुनः
प्राणों का संचार हो उठा और वे विषमुक्त होकर उठ बैठे। इस प्रकार पिता के प्राणों
पर आए संकट को भगवती ने टाल दिया। सूवा ब्राह्मण को उनके वरदान से पुत्र प्राप्ति
हुई। मांगळिया राजपूतों का अनेक बार परस्पर वग्र मिटाकर सौख्य स्थापित किया। उनको
एकता एवं पारस्परिेक प्रेम का संदेश दिया। भगवती श्री करणी जी महाराज अलौकिक एवं
दिव्य शक्तियों से सम्पन्न महाशक्ति के साक्षात एवं पूर्ण अवतार थे। परन्तु
उन्होंने अपने चारण गृहस्थ कन्या के व्यावहारिक दैनिक क्रियाकलापों में कभी
व्यवधान नहीं आने दिया। गायें चराना,
भोजन बनाने में सहयोग देना, दूध दूहना,
अतिथियों का अन्न-जल से सत्कार करना। ये दैनिक कार्य करणी जी प्रसन्नतापूर्वक
निरन्तर सुचारू रूप से सम्पन्न करते थे। करणी जी महाराज द्वारा स्थापित यही मूल्य
सुवाप एवं मांगळियावाटी क्षेत्र में आज भी जीवन्त रूप से कायम है। अतिथियों का अन्न-जल
से सत्कार करना सुवाप के किनिया तथा मांगळियावाटी क्षेत्र के लोग आज भी अपना धर्म
समझते हैं।
देशनोक करणी माता
 |
भगवती की मूर्ति |
राजस्थान भारत का एक ऐसा राज्य जो जितना खूबसूरत है उतना ही विचित्र
भी। कहीं रेत के बड़े-बड़े अस्थायी पहाड़ हैं तो कहीं तालाब की सुंदरता। शौर्य और
परंपरा की गाथाओं से सजती शाम जहाँ है तो वहीं आराधना का जलसा दिखते आठों पहर भी
रेत की तरह ही फैले हैं। ऐसी ही तिलिस्मी दुनिया से दिखते इस मरूस्थल में आश्चर्य
और कौतूहल का विषय लिए बसा देशनोक कस्बा। राजस्थान की धरती पर अनेक सांस्कृतिक रंग
रह पग पर नजर आते हैं। वीर सपूतों की इस धरती पर धर्म और आध्यात्म के भी कई रंग
दिखाई देते हैं। कहीं बुलट वाले बाबा की पूजा होती है तो कहीं तलवारों के साये में
मां की आरती की जाती है। आज हम एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं
जहां खुद मां जगदम्बा अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना किया करती थीं। जिनके आशीर्वाद
से जोधपुर और बीकानेर राज्य की स्थापना हुई।
जिस गुफा में मां पूजा अर्चना किया करती थीं, वहां उनके ज्योतिर्लीन होने के बाद मां की इच्छानुसार उनकी मूर्ति स्थापित
हुई। आज इस मंदिर में राजस्थान ही नहीं देश के कोने-कोने से लोग आते हैं। कहते हैं
यहां आने वाल हर व्यक्ति की मुराद जरूर पूरी होती है।
यहां आते ही भक्तों के सामने एक ऐसा नजारा दिखता है जिसे देख कई लोग डर
भी सकते हैं तो किसी को बहुत अजीब भी लगता है। पूरी दुनिया में ऐसा नजारा किसी और
मंदिर में नहीं दिखाई देता है।
सुनहरी रेत के बीच अपनी आभा लिए दमक रहा यह स्थान वैसे तो छोटा ही है
पर इसकी महत्ता व ख्याति विदेश तक फैली हुई है। रेत के दामन में सुनहरे संगमरमर से
गढ़ा एक मंदिर जिसकी नक्काशी यदि ऊपरी दिखावे से आकर्षित करने की बात को चरितार्थ
करती है तो भीतर की अलौकिकता अच्छी सीरत का उदाहरण पेश करती है।
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करणी माता का अद्भुत मंदिर इस मंदिर को देवी दुर्गा से जुड़े प्रमुख मंदिरों में से जाना जाता है। |
दैवीय शक्ति को समर्पित इस स्थान के कुछ रहस्य आज भी बरकरार हैं जो
किसी के लिए श्रद्धा तो किसी के लिए खोज का विषय बने हुए हैं। लोग इस मंदिर में
आते तो 'करणी माता के दर्शन के लिए हैं पर साथ ही नजरें खोजती
हैं सफेद चूहे को। 'चूहे वाला मंदिर' के
नाम से भी प्रसिद्ध यह मंदिर बीकानेर से कुछ ही दूरी पर देशनोक नामक स्थान पर बना
हुआ है। आस्था व विज्ञान का तिलिस्मी तालमेल लिए अपने सीने में राज छुपाए बैठे इस
मंदिर की यह पहली विशेषता है।
इस मंदिर में भक्तों से ज्यादा काले चूहे नजर आते हैं और इनकी खासी
तादाद में अगर कहीं सफेद चूहा दिख जाए तो समझें कि मनोकामना पूरी हो जाएगी। यही
यहाँ की मान्यता भी है। वैसे यहाँ चूहों को काबा कहा जाता है और इन काबाओं को बाकायदा
दूध, लड्डू आदि भक्तों के द्वारा परोसा भी जाता है। असंख्य
चूहों से पटे इस मंदिर से बाहर कदम रखते ही एक भी चूहा नजर नहीं आता और न ही मंदिर
के भीतर कभी बिल्ली प्रवेश करती है। कहा तो यह भी जाता है कि जब प्लेग जैसी बीमारी
ने अपना आतंक दिखाया था तब भी यह मंदिर ही नहीं बल्कि पूरा देशनोक इस बीमारी से
महफूज था।
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करणी माता का अद्भुत मंदिर ऐसी मान्यता है कि यदि किसी भी श्रद्धालु को यहां सफेद चूहे के दर्शन हो जाएं तो बड़ा भाग्यशाली होता है साथ ही यश धन और वैभव ऐसे व्यक्ति के कदम चूमते हैं |
यह तो बात हुई मान्यताओं की पर इतिहास पर नजर दौड़ाएँ तो भी करणीमाता
का अपना स्थान राजस्थान की गाथाओं में मिलता है। करणी माता ने अपने जीवनकाल में कई
राजपूत राजाओं के हित की बात की। इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो देशनोक का करणी
माता मंदिर बीकानेर के राजा गंगासिंह ने बनवाया था। संगमरमर पर की गई नक्काशी और
आकर्षित करती आकृतियों के अलावा चाँदी के दरवाजे मंदिर की शोभा और भी बढ़ा देते
हैं। वैसे बीकानेर के बसने से पहले भी करणी माता को इतिहास ने अपने पन्नों पर स्थान
दिया है।
इसके बाद 1457 में राव जोधा ने जोधपुर के एक
किले की नींव भी करणी माता से ही रखवाई थी। बात यहीं नहीं खत्म होती राजनीति और
एकता की बात भी करणी माता की कथाओं के माध्यम से जानने को मिलती है। उन दिनों भाटी
और राठौड़ राजवंशों के संबंध कुछ ठीक नहीं थे। ऐसे में राव जोधा के पाँचवें पुत्र
राव बीका का विवाह पुंगल के भाटी राजा राव शेखा की पुत्री रंगकंवर से करवाकर करणी
माता ने दो राज्यों को मित्र बना दिया। पश्चात 1485 में राव
बीका के आग्रह पर बीकानेर के किले की नींव भी करणी माता ने ही रखी।
इसे चूहे वाले मंदिर के नाम से भी जाना जानता हैं। करणी देवी
साक्षात माँ जगदम्बा की अवतार थीं।
वहाँ पर चूहों की धमाचौकड़ी देखती ही बनती है। चूहे पूरे मंदिर
प्रांगण में मौजूद रहते हैं। वे श्रद्धालुओं के शरीर पर कूद-फांद करते हैं,
लेकिन किसी को कोई नुक़सान नहीं पहुँचाते। सुबह पाँच बजे मंगला आरती
और सायं सात बजे आरती के समय चूहों का जुलूस तो देखने लायक़ होता है। मंदिर के
मुख्य द्वार पर संगमरमर पर नक़्क़ाशी को भी विशेष रूप से देखने के लिए लोग यहाँ
आते हैं। चाँदी के किवाड़, सोने के छत्र और चूहों के प्रसाद
के लिए यहाँ रखी चाँदी की बड़ी परात भी देखने लायक़ है।
करनी माता मंदिर 15 वीं सदी के रहस्यवादी करनी
माता के नाम पर है. अपने भक्तों की आत्माओं के लिए चूहे के शरीर के अंदर निवास
माना जाता है, और अगर एक चूहे को मार डाला है यह एक ठोस सोने
से बना के साथ प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए.....
वहां के पुराने लोग बताते हैं कि जिस समय चूहों से संबंधित बीमारी
प्लेग का कहर बरपा था उस समय यह इलाका इस बीमारी से बचा रहा था
अनोखा और असाधारण पवित्र ...
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करणी माता का अद्भुत मंदिर जगह जगह आपको धमा चौकड़ी मचाते चूहें दिखेंगे। |
करणी माता देवी दुर्गा की अवतार मानी जाती हैं
करणी माता बीकानेर राज घराने की कुल देवी हैं। कहा जाता है उनके
आर्शीवाद से ही बीकानेर की स्थापना राव बीका ने की थी। इन चूहों को मां का सेवक
माना जाता है इसलिए इनको कोई नुकसान नहीं पहुँचाया जाता।
यहां रहने वाले इन चूहों के काबा कहा जाता है। मां को चढाये जाने
वाले प्रसाद को भी पहले चूहे ही खाते है उसके बाद ही उसे बांटा जाता है। मंदिर हर
तरफ चूहे चूहे दिखाई देते हैं। यहां पर अगर सफेद चूहा दिखाई दे जाए तो उसे
भाग्यशाली माना जाता है। मुझे भी सफेद चूहे के दर्शन हो ही गये।
खास बात ये भी है कि इतने चुहे होते हुए भी मंदिर परिसर में बदबू का
एहसास भी नहीं होता है। इतने चूहे होते हुए भी आज तक कोई भी मंदिर में आकर या
प्रसाद खा कर बीमार नहीं पडा है। ये अपने आप में आश्चर्य है। यहां के पुजारी के घर
में तो मैने चूहे किसी बच्चे की तरह ही घूमते देखे। उनके घर के कपडों से लेकर खाने
के सामान तक सबमें चूहे ही चूहे दिखाई दे रहे थे।
इसके अलावा मंदिर का स्थापत्य भी देखने के लायक है।मंदिर का मौजूदा
स्वरूप बीसवीं सदी में अस्तित्व में आया। इस मंदिर की शैली में उत्तरवर्ती मुगल शैली
की झलक दिखती है संगमरमर का बेहद खूबसूरत इस्तेमाल मंदिर में किया गया है। मंदिर
के जालीदार झरोखों पर किया बारीक कुराई का काम बेहद सुन्दर है। मंदिर के विशाल
मुख्य दरवाजे चांदी के बने हैं।
अब मंदिर में चूहों को लेकर जो भी श्रद्धा और विश्वास हो, लेकिन यहां शूटिंग के लिए मंदिर के रखवाले कड़ी रकम वसूल करते हैं और यह
खलने वाली बात लगी। बहरहाल, ये उनका एक्सक्लूसिव अधिकार है।
मंदिर में आस्था के अलावा जो बात मुझे बहुत अच्छी लगी वह है इंसान और कुदरत का
गहरा रिश्ता जो आज की दुनिया से गायब सा होता जा रहा है।
श्री
करणी माता जी की सेवा पूजा -
करणी मां की कथा एक सामान्य ग्रामीण कन्या की कथा है, लेकिन उनके संबंध में अनेक चमत्कारी
घटनाएं भी जुड़ी बताई जाती हैं,जो उनकी उम्र के अलग-अलग
पड़ाव से संबंध रखती हैं।बताते हैं कि संवत 1595 की चैत्र शुक्ल
नवमी गुरुवार को श्री करणी ज्योर्तिलीन हुईं। संवत 1595 की
चैत्र शुक्ला 14 से यहां श्री करणी माता जी की सेवा पूजा
होती चली आ रही है।
श्री करणी माता मंदिर-
मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर नक्काशी को भी विशेष रूप से देखने
के लिए लोग यहां आते हैं। चांदी के किवाड़, सोने के छत्र और
चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बड़ी परात भी देखने लायक है। वर्ष
में दो बार नवरात्रों पर चैत्र व आश्विन माह में इस मंदिर पर विशाल मेला भी लगता
है। तब भारी संख्या में लोग यहां पहुंचकर मनौतियां मनाते हैं। श्रद्धालुओं के
ठहरने के लिए मंदिर के पास धर्मशालाएंभी हैं।
मां करणी मंदिर तक पहुंचने के लिए –
मां करणी मंदिर तक पहुंचने के लिए बीकानेरसे बस, जीप व टैक्सियां आसानी से मिल जाती हैं।
राव बीका मां करणी के समक्ष नतमस्तक और
महाशक्ति मां की दुआओ का असर -
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जब देशनोक में राव बीका मां करणी के समक्ष नतमस्तक हो कर आशीर्वचन
ग्रहण कर रहे थे, तब मां करणी ने कतिपय शब्द भविष्य के सन्दर्भ में कहे
थे, जिन्हें, अक्षरश: उद्धृत करना
अपेक्षित होगा। मां करणी के कालजयी शब्द थे, ‘तुम्हारा यश
जोधा से सवाया होगा। अनगिनत भू पति तुम्हारे चाकर होंगे। तुम्हारे वंशज पांच सदी
तक इस भू-भाग के छत्रपति रहेंगे।’ देव वाणी के सदृश उक्त
भविष्यवाणी अक्षरश: सत्य सिद्ध हुई।किसी भी राज्य के स्थायित्व के लिए सुरक्षा का
अहसास सर्वोपरि है। यह कहने में अतिरंजना नहीं होगी कि सुरक्षा का अहसास मां की
दुआओं का ही प्रतिफल है। यही कारण रहा कि जब 1465 ई. में राव
जोधा के महत्वाकांक्षी कुंवर बीका नव राज्य स्थापित करने के लिए मंडोर से जांगल
प्रदेश की ओर अग्रसर हुए, तो प्रथमत: मां करणी का आशीर्वाद
लेने देशनोक पहुंचे थे। यह मां करणी द्वारा उच्चारित आशीर्वचन का ही प्रतिदान था
कि कालान्तर में कुंवर बीका चांडासर आदि स्थानों पर आधिपत्य स्थापित करते हुए
कोडमदेसर पहुंचे, तो यहीं 1472 ई. में
स्वयं को राजा के रूप में प्रस्थापित किया था।
बीकानेर नगर की स्थापना -
इतिहास साक्षी है कि जब 1488 ई. में राती घाटी
में अवस्थित गढ़ के निकट बीकानेर नगर की स्थापना की गई, तो इसका
समस्त श्रेय राव बीका ने मां करणी को दिया था। मां करणी, जो
बीकाणा के राठौड़ों की कुल देवी मानी जाती हैंयहां इस तथ्य को रेखांकित करना प्रासंगिक
होगा कि जब देशनोक में राव बीका मां करणी के समक्ष नतमस्तक हो कर आशीर्वचन ग्रहण
कर रहे थे
बीकानेर के अंतिम महाराजा करणी सिंह - देव
वाणी के सदृश उक्त भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई क्योंकि जब बीकानेर के अंतिम महाराजा
करणी सिंह का 6 सितम्बर 1988 को देहावसान
हुआ तो बीकानेर नगर को स्थापित हुए पांच सौ वर्ष हो गये थे। कहना न होगा कि
बीकानेर नगर की स्थापना सितम्बर 1488 में हुई थी , अत: ठीक पांच सौ वर्ष के पश्चात्,अर्थात 6 सितम्बर 1988 को , एक स्वर्णिम
काल खंड का अवसान हो गया था।इसी अवसान से बचने के लिए तो जोधपुर के राठौड़ों ने
1740 ई. में देशनोक के चारणों से विशेष प्रार्थना करने के लिए आग्रह
किया था। इसी असीम भक्ति एवं श्रद्धा का ही प्रतिफल रहा
मन्दिर का मुख्य मंडप - मन्दिर
के मुख्य मंडप में मां करणी एवं उनकी बहिनों की मूर्तियां है। मंदिर की सबसे विशिष्ट
बात यह है कि हजारों चूहे स्वच्छंद रूप से विचरण करते रहते हैं। इन चूहों को ‘काबा’ कहा जाता है। उक्त ‘काबाओं’
को पूज्य मान कर मंदिर के पुजारी व भक्तगण भोज्य सामग्री एवं प्रसाद
खिलाते हैं। क्योंकि चारण समाज के व्यक्ति इन चूहों को अपना पूर्वज मानते हैं।
मंदिर में आने वाले चढ़ावे को दो भागों
में बांटा जाता है - मंदिर में आने वाले चढ़ावे को दो
भागों में बांटा जाता है। प्रथम चढ़ावा जो द्वार भेंट कहलाता है, वह मंदिर के पुजारी तथा अन्य सेवादारों को दिया जाता है। द्वितीय चढ़ावा,
कलश भेंट कहलाता है, जो मंदिर के रख-रखाव में
काम आता है।

धार्मिक उत्सव वर्ष में दो बार आयोज्य
होता है - नवरात्र में मां करणी को समर्पित
धार्मिक उत्सव वर्ष में दो बार आयोज्य होता है। प्रथमत: चैत्र माह के शुक्ल पक्ष
की प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल की दशमी तक तथा द्वितीयत: आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की
प्रतिपदा से दशमी तक। आज कहना न होगा की देशनोक में माँ श्री करणी के मंदिर में
स्थित मुख्य मंडप के चारों ओर अनगिनत श्रद्धालु परिक्रमा कर रहे हैं।उक्त परिक्रमा
से प्रतिध्वनित हो रहे पवित्र नाद के आलोक में यही भावाक्ति है कि सुरक्षा का अहसास
माँ की दुआओं का प्रतिफल है,
मां करणी देवी का विख्यात मंदिर राजस्थान के बीकानेर से लगभग 30किलोमीटर दूर जोधपुर रोड पर गांव देशनोक में स्थित है। यह भी एक तीरथधाम
है, लेकिन इसे चूहे वाले मंदिर के नाम सेभी देश और दुनिया के
लोग जानते हैं।अनेक श्रद्धालुओं का मत है कि करणी देवी साक्षात मां जगदम्बा की
अवतार थीं। अब से लगभग साढ़े छह सौ वर्ष पूर्व जिस स्थान पर यह भव्य मंदिर है,
वहां एक गुफा में रहकर मां अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना किया करती थीं।यह
गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्थित है।मां के ज्योर्तिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार
उनकी मूर्ति की इस गुफा में स्थापना की गई। बताते हैं कि मां करणी के आशीर्वाद से
ही बीकानेर और जोधपुर राज्य की स्थापना हुई थी। मां के अनुयायी केवल राजस्थान में
ही नहीं, देशभर में हैं, जो समय-समय पर
यहां
दर्शनों के लिए आते रहते हैं।संगमरमर से बने मंदिर की भव्यता देखते ही
बनती है। मुख्य दरवाजा पार कर मंदिर के अंदर पहुंचे। वहां जैसे ही दूसरा गेट पार
किया, तो चूहों की धमाचौकड़ी देख मन दंग रह गया। चूहों की
बहुतायत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पैदल चलने के लिए अपना अगला कदम
उठाकर नहीं, बल्कि जमीन पर घसीटते हुए आगे
रखना होता है। लोग इसी तरह कदमों को घसीटते हुए करणी मां की मूर्ति
के सामने पहुंचते हैं। चूहे पूरे मंदिर प्रांगण में मौजूद रहते है। वे श्रद्धालुओं
के शरीर पर कूद-फांद करते हैं,
लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। चील, गिद्ध और दूसरे जानवरों से इन चूहों की रक्षा के लिए मंदिर में खुले
स्थानों पर बारीक जाली लगी हुई है।इन चूहों की उपस्थिति की वजह से ही श्री करणी
देवी का यह मंदिर चूहों वाले मंदिर के नाम से भी विख्यात है।ऐसी मान्यता है कि
किसी श्रद्धालुको यदि यहां सफेद चूहे के दर्शन होते हैं,तो
इसे बहुत शुभ माना जाता है। सुबह पांच बजे मंगला आरती और सायं सात बजे आरती के समय
चूहों का जुलूस तो देखने लायक होता है।
एक काहनी है।
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सुवाप के वर्तमान भव्य मंदिर निर्माण स्थल |
मान्यता है कि माता के सौतेल पुत्र की मृत्यु कुएं में गिरने से हो गयी थी। इसके बादा करणी माता ने
पुत्र को जीवित करने का आदेश यमराज को
दिया था।
यमराज ने माता के पुत्र को जीवित तो कर दिया लेकिन वह चूहा बन गया। इसलिए माना जाता है कि चूहे
माता के पुत्र के समान हैं। माता के
वंशज मृत्यु के बाद चूहा बनाकर मंदिर
में पहुंच जाते हैं।
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करणी माता का अद्भुत मंदिर यहां का प्रशाद आपको तब तक नहीं मिलेगा जब तक इसे चूहें जूठा न कर दें |
अम्बे
तेरी शरण मैं सदा रहे मम् ध्यान!
जनम
-जनम तेरी भक्ति करूँ ऐसा दो वरदान !!
आसू
मास उजाल पख सातम शुक्रवार
चवदे
सौ चम्बाल मैं आप लियो अवतार
पंद्रे
सौ पिच्चान्वे देव शुकल गुरु नम:
देवी
सागे देह सूँ पुग्या जोत परम
बरस
डेड सौ मास छउ दिन उपरला दोय
देवी
सिधाया देह सूं, जगत सुधारण जोय
धिन-धिन
आ धौरा धारा धिन देशाणो गाँव
जगतम्बा
करणी जठे अवतर थरप्यो थान
श्री
करणी माता देशनोक
BY-मित्रोआप लोगो को मेरा नमस्कार
!!
मेरा नाम :पेपसिंह राठौड़
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करणी माता का अद्भुत मंदिर देशनोक का ये मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है। | | |
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