भारतीय संस्कृति में मानव जीवन के लक्ष्य भौतिक सुख तथा आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति के लिए अनेक देवी देवताओं की पूजा का विधान है जिनमें माँ दुर्गा शक्तिकी उपासना प्रमुख हैं। माँ दुर्गा शक्ति की उपासना को उतना ही प्राचीन माना जाता है , जितना शिववांङ्मय में सर्वप्राचीन साहित्य अपौरुषेय वेद को। यही कारण है कि देवी कहती हैं- 'मैं रुद्रों एवं वसुओं के रूप में विचरण करती हूं।

माँ दुर्गा शक्ति की उपासना से जीव का कल्याण होता है। माँ दुर्गा शक्ति सभी जीवों की रक्षा करने वाली है। सृष्‍टि का संहार और पालन करने की अपार शक्ति उनके पास है। माँ अपने भक्तों के लिए सदैव भक्तों ने हर प्रकार की पूजा और विधान से मां दुर्गा को प्रसन्न करने के जतन किए। लेकिन अगर

आप व्यस्तताओं के चलते ‍विधिवत आराधना ना कर सकें तो मात्र 108 नाम के जाप करें

दुर्गा जी के 108 नाम

महारानी जग कल्याणी तेरी वाहन कमाल है शेर की सवारी माँ तुम्हारी बे मिसाल है

ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ॠषिः, अनुष्टुप

छन्दः, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वत्यो देवताः,

सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः ।

1-ॐज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥ १ ॥

2 - दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥ २ ॥

3 - सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते ॥ ३ ॥ 4 - शरणागतदीनार्तपरित्राणे । सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तु ते ॥ ४ ॥

5 - सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते ॥ ५ ॥

6 - रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् । त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां

7 - त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्र्यन्ति ॥ ६ ॥सर्वबाधाप्रश्मनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि ।एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥ ७ ॥

देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

1-सती 2-वैष्णवी 3-चामुंडा 4-साध्वी 5-वाराही 6-भवानी 7-भवप्रीता 8-लक्ष्मी 9-भवमोचनी 10-पुरूषाकृति 11-आर्या 12-विमला 13-दुर्गा 14-उत्कर्षिणी 15-जया 16-ज्ञाना 17-आद्या 18-शूलधारिणी 19-बुद्धिदा 20-पिनाकधारिणी 21-क्रिया 22-त्रिनेत्रा 23-नित्या 24-चंद्रघंटा 25-सर्ववाहनवाहना 26-बहुला 27-चित्रा 28-निशुम्भशुम्भहननी 29-मन: 30-महिषासुरमर्दिनि 31-शक्ति 32-बहुलप्रेमा 33-महातपा 34-मधुर्कटभहंत्री 35-अहंकारा 36-चण्डमुण्डविनाशिनि 37-चित्तरूपा 38-सर्वअसुरविनाशिनि 39-चिता 40-सर्वदानघातिनी 41-चिति 42-सर्वशास्त्रमयी 43-सर्वमंत्रमयी44-सत्ता 45-सर्वअस्त्रधारिणी46-सत्यानंदस्वरुपिणी 47-अनेकशस्त्रहस्ता48-अनन्ता 49-अनेकास्त्रधारिणी 50-भाविनि 51-कुमारी 52-भाव्या 53-एककन्या 54-भव्या 55-कैशोरी 56-अभव्या 57-युवति58-सदागति 59-यति: 60-शाँभवि 61-अप्रौढ़ा 62-देव माता 63-प्रौढा़ 64-चिंता 65-वृद्धमाता 66-रत्नप्रिया 67-बलप्रदा 68-सर्वविद्या 69-महोदरी70-दक्षकन्या 71-मुक्तकेशी 72-दक्षयज्ञविनाशिनी 73-घोररूपा74-अपर्णा 75-महाबला76-अनेकवर्णा 77-अग्निज्वाला 78-पाटला 79-रुद्रमुखी80-पाटलावती81-कालरात्रि 82-पट्टाम्बरपरिधाना 83-तपस्विनी 84-कलमंजिररंजिनी 85-नारायणी86-अमेय विक्रमा 87-भद्रकाली88-क्रूरा 89-विष्णुमाया 90-सुंदरी 91-जलोदरी 92-सुरासुंदरी 93-शिवदूती 94-वनदुर्गा 95-कराली 96मांतंगी 97-अनंता 98-मतंगमुनिपूजिता 99-परमेश्वरी 100-ब्राह्मी 101-कात्यायनी 102-माहेश्वरी 103-सावित्री 104-ऎंद्री 105-प्रत्यक्षा 106-कौमारी 107-ब्रह्मवादिनी 108-बुद्धिबुद्ध

इससे भी माता प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती है। भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। माँ जगत् की प्राणाधार हैं और अपने भक्तों की रक्षा के लिए आश्चर्यजनक प्रमाण प्रकट किया करती हैं।

भक्त इसलिए करते हैं ताकि उनका जीवन सफल हो सके माँ दुर्गा शक्ति अपने भक्तों की सभी प्रकार की बाधाओं एवं संकटों से उबारने वाली हैं और इनकी कृपा से समस्त पाप और इनकी मुद्रा सदैव युद्ध के लिए अभिमुख रहने की होती हैं, अत:भक्तों के कष्ट का निवारण ये शीघ्र कर देती हैं । माँ दुर्गा शक्ति के अवतार पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। देश के प्रत्येक क्षेत्र में माँ दुर्गा शक्ति की पूजा की अलग परम्परा है। सभी भक्त अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा और उपासना करते है। परंतु इस युग में भगवान शिव और माँ दुर्गा शक्ति के अवतार को सबसे ज़्यादा पूजा जाता है।

इस ब्लॉग के माध्यम से हिन्दू धर्म को सम्‍पूर्ण विश्‍व में जन-जन तक पहुचाना चाहता हूँ और इसमें आपका साथ मिल जाये तो और बहुत ख़ुशी होगी।

यह ब्लॉग श्रद्धालु भक्तों की जानकारी तथा उनके मार्गदर्शन के ध्येय हेतु अर्पित एक पूर्णतया अव्यावसायिक ब्लॉग वेबसाइट है।

अगर कुछ त्रुटी रह जाये तो मार्गदर्शन व अपने सुझाव व परामर्श देने का प्रयास करें।..पर्व-त्यौहार नीचे हैअपना परामर्श और जानकारी इस नंबर +919723187551 पर दे सकते हैं।

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धर्मप्रेमी दर्शन आपकी सेवा में हाजिर है सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।- पेपसिह राठौङ तोगावास

भारतीय संस्कृति में मानव जीवन के लक्ष्य भौतिक सुख तथा आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति के लिए अनेक देवी देवताओं की पूजा का विधान है जिनमें माँ दुर्गा शक्तिकी उपासना प्रमुख हैं। माँ दुर्गा शक्ति की उपासना को उतना ही प्राचीन माना जाता है , जितना शिववांङ्मय में सर्वप्राचीन साहित्य अपौरुषेय वेद को। यही कारण है कि देवी कहती हैं- 'मैं रुद्रों एवं वसुओं के रूप में विचरण करती हूं।

माँ दुर्गा शक्ति की उपासना से जीव का कल्याण होता है। माँ दुर्गा शक्ति सभी जीवों की रक्षा करने वाली है। सृष्‍टि का संहार और पालन करने की अपार शक्ति उनके पास है। माँ अपने भक्तों के लिए सदैव भक्तों ने हर प्रकार की पूजा और विधान से मां दुर्गा को प्रसन्न करने के जतन किए। लेकिन अगर

आप व्यस्तताओं के चलते ‍विधिवत आराधना ना कर सकें तो मात्र 108 नाम के जाप करें

दुर्गा जी के 108 नाम

महारानी जग कल्याणी तेरी वाहन कमाल है शेर की सवारी माँ तुम्हारी बे मिसाल है

ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ॠषिः, अनुष्टुप

छन्दः, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वत्यो देवताः,

सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः ।

1-ॐज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥ १ ॥

2 - दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥ २ ॥

3 - सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते ॥ ३ ॥ 4 - शरणागतदीनार्तपरित्राणे । सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तु ते ॥ ४ ॥

5 - सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते ॥ ५ ॥

6 - रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् । त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां

7 - त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्र्यन्ति ॥ ६ ॥सर्वबाधाप्रश्मनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि ।एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥ ७ ॥

देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

1-सती 2-वैष्णवी 3-चामुंडा 4-साध्वी 5-वाराही 6-भवानी 7-भवप्रीता 8-लक्ष्मी 9-भवमोचनी 10-पुरूषाकृति 11-आर्या 12-विमला 13-दुर्गा 14-उत्कर्षिणी 15-जया 16-ज्ञाना 17-आद्या 18-शूलधारिणी 19-बुद्धिदा 20-पिनाकधारिणी 21-क्रिया 22-त्रिनेत्रा 23-नित्या 24-चंद्रघंटा 25-सर्ववाहनवाहना 26-बहुला 27-चित्रा 28-निशुम्भशुम्भहननी 29-मन: 30-महिषासुरमर्दिनि 31-शक्ति 32-बहुलप्रेमा 33-महातपा 34-मधुर्कटभहंत्री 35-अहंकारा 36-चण्डमुण्डविनाशिनि 37-चित्तरूपा 38-सर्वअसुरविनाशिनि 39-चिता 40-सर्वदानघातिनी 41-चिति 42-सर्वशास्त्रमयी 43-सर्वमंत्रमयी44-सत्ता 45-सर्वअस्त्रधारिणी46-सत्यानंदस्वरुपिणी 47-अनेकशस्त्रहस्ता48-अनन्ता 49-अनेकास्त्रधारिणी 50-भाविनि 51-कुमारी 52-भाव्या 53-एककन्या 54-भव्या 55-कैशोरी 56-अभव्या 57-युवति58-सदागति 59-यति: 60-शाँभवि 61-अप्रौढ़ा 62-देव माता 63-प्रौढा़ 64-चिंता 65-वृद्धमाता 66-रत्नप्रिया 67-बलप्रदा 68-सर्वविद्या 69-महोदरी70-दक्षकन्या 71-मुक्तकेशी 72-दक्षयज्ञविनाशिनी 73-घोररूपा74-अपर्णा 75-महाबला76-अनेकवर्णा 77-अग्निज्वाला 78-पाटला 79-रुद्रमुखी80-पाटलावती81-कालरात्रि 82-पट्टाम्बरपरिधाना 83-तपस्विनी 84-कलमंजिररंजिनी 85-नारायणी86-अमेय विक्रमा 87-भद्रकाली88-क्रूरा 89-विष्णुमाया 90-सुंदरी 91-जलोदरी 92-सुरासुंदरी 93-शिवदूती 94-वनदुर्गा 95-कराली 96मांतंगी 97-अनंता 98-मतंगमुनिपूजिता 99-परमेश्वरी 100-ब्राह्मी 101-कात्यायनी 102-माहेश्वरी 103-सावित्री 104-ऎंद्री 105-प्रत्यक्षा 106-कौमारी 107-ब्रह्मवादिनी 108-बुद्धिबुद्ध

इससे भी माता प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती है। भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। माँ जगत् की प्राणाधार हैं और अपने भक्तों की रक्षा के लिए आश्चर्यजनक प्रमाण प्रकट किया करती हैं।

भक्त इसलिए करते हैं ताकि उनका जीवन सफल हो सके माँ दुर्गा शक्ति अपने भक्तों की सभी प्रकार की बाधाओं एवं संकटों से उबारने वाली हैं और इनकी कृपा से समस्त पाप और इनकी मुद्रा सदैव युद्ध के लिए अभिमुख रहने की होती हैं, अत:भक्तों के कष्ट का निवारण ये शीघ्र कर देती हैं । माँ दुर्गा शक्ति के अवतार पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। देश के प्रत्येक क्षेत्र में माँ दुर्गा शक्ति की पूजा की अलग परम्परा है। सभी भक्त अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा और उपासना करते है। परंतु इस युग में भगवान शिव और माँ दुर्गा शक्ति के अवतार को सबसे ज़्यादा पूजा जाता है।

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यह ब्लॉग श्रद्धालु भक्तों की जानकारी तथा उनके मार्गदर्शन के ध्येय हेतु अर्पित एक पूर्णतया अव्यावसायिक ब्लॉग वेबसाइट है।

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Wednesday, 21 January 2015

माँ कैला देवी मन्दिर (कैला गाँव, करौली राजस्थान)



                   माँ कैला देवी मन्दिर (कैला गाँव, करौली राजस्थान)
काली सिल नदी के किनारे त्रिकूट पर्वत पर एक बाई ओर उसका मुंह कुछ टेढ़ा है, वो ही कैला मईया है,दूसरि माता चामुण्डा देवी है
करौली नगर
करौली नगर राजस्थान का ऐतिहासिक नगर है। इसकी स्थापना 955 ई. के आसपास राजा विजय पाल ने की थी जिनके बारे में कहा जाता है कि वे भगवान कृष्ण 5 के वंशज थे। करौली एक जिला मुख्यालय है। 1818 में करौली राजपूताना एजेंसी का हिस्सा बना। 1947 में भारत की आजादी के बाद यहां के शासक महाराज गणेश पाल देव ने भारत का हिस्सा बनने का निश्चाय किया। 7 अप्रैल 1949 में करौली भारत में शामिल हुआ और राजस्थान राज्य का हिस्सा बना। यहां का सिटी पेलेस राजस्थान के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है। मदन मोहन जी का मंदिर देश-विदेश में बसे श्रृद्धालुओं के बीच बहुत लोकप्रिय है। अपने ऐतिहासिक किलों और मंदिरों के लिए मशहूर करौली दर्शनीय स्थंल है।
कैलादेवी मन्दिर-   
कैला देवी मंदिर राजस्थान
राज राजेश्वेरी कैला देवी का भी इस क्षेत्र में विशेष महात्म्य है। इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि चैत्र और आश्विन नवरात्रि के इन  दोनों अवसरों पर इस क्षेत्र से लाखों श्रद्धालु कैला देवी के करौली स्थित मंदिर के दर्शन करने जाते हैं।
कैला देवी मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर के निकट करौली जिले में स्थित, हिण्डौन सिटी रेलवे स्टेशन से 30 कि.मी. दूर, करौली ज़िला से लगभग 25 किमी दूर कैला गाँव में, कैला देवी एक प्राचीन मंदिर स्थापित है। मंदिर काली सिल नदी के किनारे त्रिकूट पर्वतपर  स्थापित है।  

मुख्य मन्दिर संगमरमर से बना हुआ है, मन्दिर में संगमरमर के 18 खम्भे हैं।  
जिसमें अन्दर मुख्य भवन की कोठरी में चॉदी की चौकी पर सुवर्ण छतरियों के नीचे दो प्रतिमाएँ हैं। जिनमें एक बाई ओर उसका मुंह कुछ टेढ़ा है, वो ही कैला मईया है। एवं दाहिनी ओर दूसरि माता चामुण्डा देवी  की प्रतिमा है। कैलादेवी की आठ भुजाऐं एवं सिंह पर सवारी करते हुए बताया है। त्रिकूट मंदिर की मनोरम पहाड़ियों की तलहटी में स्थित कैला देवी पहुंचने वाले यात्री पहले कालीसिल नदी में स्नान करते हैं उसके बाद एक किलोमीटर की चढाई चढकर मन्दिर पर पहुचते हैं, कैलादेवी मन्दिर एक प्रसिद्व हिन्दू धार्मिक स्थल है। कैला देवी मंदिर उत्तर भारत के प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में ख्याति प्राप्त है।

ऐसी किवदं वर्तमान समय में मंदिर में स्थापित मूर्ति पूर्व में नगरकोट में स्थापित थी।
विधर्मी शासकों के मूर्ति तोड़ो अभियान से आशंकित उस मंदिर के पुजारी योगिराज मूर्ति को मुकुंददास खींची के राज्य में ले आये। केदार गिरि बाबा की गुफा के निकट रात्रि हो जाने से उन्होंने मूर्ति बैलगाड़ी से उतारकर नीचे रख दी और बाबा से मिलने चले गये। दूसरे दिन सुबह जब योगिराज ने मूर्ति उठाने की चेष्टï की तो वह उस मूर्ति हिला भी न सके। इसे माता भगवती की इच्छा समझ योगिराज ने मूर्ति को उसी स्थान पर स्थापित कर दिया और मूर्ति की सेवा करने की जिम्मेदारी बाबा केदारगिरी को सौंप कर वापस नगरकोट चले गये।

चैत्रमास शुक्ल प्रतिपदा को शास्त्रोक्त रीति के अनुसार कैला माता के रूप में इस मूर्ति की स्थापना हुई। माता कैलादेवी का एक भक्त दर्शन करने के बाद यह बोलते हुए मन्दिर से बाहर गया था कि ´जल्दी ही लौटकर फिर वापिस आउंगा जो शायद आज तक नहीं आया है और उसके इंतजार में माता आज भी उधर की ही ओर देख रहीं है जिधर वो गया।

दाहिनी ओर माता चामुण्डा का रूप विग्रह है। कोठरी में एक दीपक घी और दूसरा तेल का अखण्ड रूप से जलते रहते हैं। माता की भोग प्रसादी में भक्त नारियल, रोली, मेंहदी, पान बीड़ा, बतासे, चूड़िया, ध्वजा, छत्र, लौंग, अगरबत्ती, धूप, माला, पोशाक, हल्वा पूरी चना सब कुछ अपनी श्रृद्वा और सामथ्र्य के अनुसार अर्पित करते हैं तो कुछ भक्त 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाकर मिन्दर के बाहर रात्रि जागरण भी करते हैं। बाहर के आहते में नगाडों की धुन गूजती रहती है जहॉ महिलाऐं नृत्य कर माता को मनाती हैं।

राजस्थान और उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती शहर भरतपुर तथा बयाना के रेलवे केन्द्र के मध्य में एक स्टेशन कैला देवी का है, जिसे केवल झील का स्टेशन भी कहा जाता है। क्योंकि इसके निकट ही एक सुरम्य प्राकृतिक छटायुक्त पानी की एक झील भी है, जिसे मोती झील के नाम से जा इस झील के नाम के विषय में अनेक धारणाएँ हैं, जिनमें कुछ प्राचीन व्यक्तियों के अनुसार यह झील मोती प्राप्त करने के लिये प्रसिद्ध थी : कुछेक का कथन है कि इसमें भूतपूर्व भरतपुर नरेश का कोई मोती नामक पालतू कुत्ता डूब कर इस संसार से विदा हो गया था। अस्तु प्राकृतिक छटा के अतिरिक्त यह स्थान कैला देवी के मंदिर के लिये विख्यात है। जहाँ देवी के मेले त्यौहारों के विशेष समारोहों के अवसर पर देश के सुदूरवर्ती विभिन्न स्थानों से लाखों नर-नारी एकत्रित होते हैं। भक्तों का यह मेला यहाँ एक अनुपम इतिहास रखता है।
जहाँ प्रतिवर्ष मार्च - अप्रॅल माह में एक बहुत बड़ा मेला लगता है। इस मेले में राजस्थान के अलावा दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश के तीर्थ यात्री आते है, भक्तों के लिए पूजनीय है
यहां देवी के चमत्कार की कई घटनाएं लोककथा के रूप में प्रचलित हैं जिनमें सुखदेव पटेल की देह में रमण, भक्त बहोरा को दर्शन, खींची राजा को प्राणदंड से बचाना, ब्राह्मïण पुत्र को जीवनदान आदि प्रमुख हैं।
काली सिल नदी के किनारे त्रिकूट पर्वत पर एक बाई ओर उसका मुंह कुछ टेढ़ा है, वो ही कैला मईया है,दूसरि माता चामुण्डा देवी है
इतिहास
मध्य रेलवे के हिण्डौन सिटी रेलवे स्टेशन से 30 कि.मी. दूर स्थित करौली नामक नगर से 25 किमी. दूर काली सिल नदी के किनारे त्रिकूट पर्वत पर कैला देवी के मंदिर की स्थापना बाबा केदार गिरि द्वारा वर्ष 1430 में की गयी थी।  

वर्ष 1432 में खींची के राजा मुकुंद दास द्वारा मठ बनवाया गया जिसे बाद में दूसरे राजाओं ने धीरे-धीरे विकसित किया।

वर्ष 1459 में मंदिर की समस्त भूमि को महाराजा चंद्रसेन ने अपने अधिकार में ले लिया।
महाराजा गोपालदास, धर्मपाल, गोपाल सिंह, प्रताप पाल, मदनपाल, जयसिंह पाल, अर्जुनपाल, तमरपाल, भीमपाल एवं गणेशपाल आदि  दूसरे  राजाओं ने जितना संभव हो सकता था,  मंदिर का विस्तार कराया।

इस मंदिर का निर्माण राजा भोमपाल ने 1600 ई. में करवाया था।
इस मंदिर से जुड़ी अनेक कथाएं यहाँ प्रचलित है-
कुछ माता के भक्तगण यह जानने को उत्सुक है, कि यह सिद्धपीठ कब से है ? और कैला माता का श्री सिद्धविग्रह कब और कैसे आया है ?
श्री मदभागवत में लिखा है कि श्री कृष्ण के जन्म पूर्व श्री पराशक्ति कन्या रूप में नंद गोप के घर प्रगट हुई थी। श्री वासुदेव जी द्धारा उस कन्या का काराग्रह में प्रवेश कराना और श्री कृष्ण नंदगोप के घर पहुचे । उक्त कन्या को क्रूर कंस द्धारा पछाडा गया तथा कन्या द्धारा हाथ से छूट कर आकाशवाणी की गयी। वही आदिशक्ति महामाया योगमाया इस भूमण्डल पर अवतरित होकर श्री कैला देवी के नाम से पूजि जा रही है।


भीमसेन को नेत्रो का वरदान दिया और कहा मे कलियुग मे कैलानाम से जानी जाऊगी। मेरे भक्त मुझे केलेश्वरीनाम से जानेगे। मेरा स्थान लोहार्राके पास श्री कैला देवी के नाम से विख्यात होगा। जहा मे एक दानव को काली सिल नदी के किनारे मारूगी -
एक समय की बात है राजा युधिष्ठर देवी की स्तुती कर रहे थे । तब भीमसेन ने हँसकर राजा से कहा कि हे राजन मैं तथा सारा संसार तुमको बहुत बडा योग्यवान मानते है किन्तु मेरी भूल हुई तुम कुछ भी नही जानते हो क्योकि यह प्रकृति जड है इसने संसार को मोह रखा है । चेतन पुरुष है । प्रकृति उसकी प्रिया है इस प्रकार प्राथना कर आपने जूतियो को सर पर चढा लिया है । यदि आप वाणी पर संयम नही कर सकते तो श्री महादेव जी की आराधना कीजिए इन वाक्यो को सुनकर देवी रुष्ट हो गयी । उसी समय भीमसेन अंधा हो गया राजा युधिष्टर से जब भीम ने पूछा कि ऐसा क्यो हो गया । तब राजा ने कहा कि तुमने माता जगदम्बा का अपमान किया है । इस तुम अंधे हो गये हो । तब भीमसेन ने माता जगदम्बा की स्तुती की भीम की स्तुती से प्रसन्न होकर देवी ने पुन: नेत्रो का वरदान दिया और कहा जब जब धर्म की हानी होती है तब तब मैं अवतार लेती हू । मैं कलियुग मे कैला नाम से जानी जाऊगी। मेरे भक्त मुझे केलेश्वरी नाम से जानेगे। इस प्रकार मेरा स्थान लोहार्रामुकुन्ददास जी के पास श्री कैला देवी के नाम से विख्यात होगा । जहा मैं दुर्गम नामक दानव को काली सिल नदी के किनारे मारूगी । 
राजा मुकुन्द दास खीची ने चामुण्डा माता का मंदिर बनावाया था
यह सुना जाता है कि जिस सुस्थल मे श्री कैला देवी का मंदिर अब विधमान है। वह भूमि किसी मुकुन्ददास नामक खीची राजा के अधीनस्थ थी। यहा घोर जंगल था इधर एक नदी बहती थी जिसे अब काली सिल कहकर पुकारा जाता है। उसी के निकट एक पहाड की तह मे एक ग्राम था उस ग्राम मे मीना वर्ग था।  
एक घर यदुवंशी राजपुत्र का था जो इस गँ।व के भौमियो राजपूत कहलाते थे।
मुकुन्ददास जी वासीखेरा नाम के ग्राम मे गागरौन नामक किले मे रहते थे। मुकुन्ददास जी ने जहा श्री चामुण्डा जी की मूर्ति की आराधना की थी । मुकुन्ददास जी सम्भवत: उक्त चम्बल पार कोटा राज्य की भूमि मुकुन्ददास जी स्वामी थे। और अब श्री कैला देवी के मठ से 5 मील दूरी पर दक्षिण भाग मे जो वासीखेरा नाम से ग्राम था, उस ग्राम के खण्डर है। वह स्थल उक्त राजा के अधिपत्य मे था । और वह समय समय पर यात्रार्थ जाया करते थे । उन्होने माई का मामूली ढंग का मंदिर बनवाकर बीजक भी पधराया जो विक्रम सम्वत 1207 ई. का था।
 
सन् 1207 ई. मे बासी खेडानामक ग्राम मे राजा मुकुन्द दास खीची ने चामुण्डा माता का मंदिर बनावाया था उसके पास ही एक लोहर्रानामक प्राचीन ग्राम था ये दौनो ही ग्राम वियावान जंगलो मे स्थित थे पास ही एक नदी बहती रहती थी । यह। के निवासी मख्यत: खेती बाडी करते थे । और मवेशी पालते थे चारो तरफ हिसंक जानवर रहते थे।

दानव दाना दह के अत्याचार से मुक्ति पाने के लिये सभी लोग बाबा केदारगिरीपास गये   
बासी खेडाऔर लोहर्राग्राम के पास उस समय यहा एक दाना दह  नामक दानव भी पैदा हो गया था, जो आये दिन ग्राम वालो को सताता रहता था । वह आये दिन ग्राम वालो पर अत्याचार किया करता था । ग्राम वासियो के प्राण संकट मे आ गये। तब सभी ग्रामवासि मिलकर दानव दाना दह  से मुक्ति पाने के लिये बाबा केदारगिरीके बाबा पास गये। ग्रामवासियो के लिये बाबा परम आदरणीय थे। बाबा केदारगिरीलोहर्रा ग्राम से लगभग 3 किमी. दूरी पर एक गुफा मे रहते थे। वे माता भगवती के बडे ही उपासक थे। जब ग्राम के सभी लोग एक साथ बाबा के पास गये । बाबा उस समय माता की उपासना कर रहे थे । बाबा की एकाद्रता अचानक भंग हुई तो उन्होने ग्राम वालो से आने का कारण पूछा, तो सभी ग्रामवासि दानव दाना दह  से मुक्ति का उपाय पूछने लगे। हाथ जोडकर अपने दुखो से मुक्ति दिलाने की प्राथना करने लगे और सभी  ग्रामवासी बाबा के चरणो मे गिर पडे। जहा कभी बाबा केदारगिरी एक गुफा मे रहते थे आज बनी हुई है।

ग्रामवासियो की प्रार्थना सुनकर केदारगिरी ने कहा हे ग्रामवासियो तुम चिन्ता मत करो माता तुम सब का अति शीघ्र कल्याण करेगी।
अब मैं माता जगदम्बे की उपासना करने हिन्गलाज पर्वत जा रहा हू तुम भी तुम्हारे ग्राम जाओ इतना कहकर बाबा तपस्या करने चल दिये । और अपनी गुफा की पूजा का कार्यभार वही के राजपुत्र परिवार को सौप गये।
बाबा केदारगिरी का हिंगलाज पर्वत पर जाकर तपस्या कर वरदान पाना-   
हिंगलाज पर्वत पर जाकर बाबा केदारगिरी घनघोर तपस्या करने लगे। उनकी तपस्या से जगजननी माता प्रसन्न हुई और माता ने कन्या रुप मे, अष्ठभवानी रुप मे दर्शन दिये। उसका रुप परम तेजस्वी था उस अलौकिक स्वरूप को बाबा नही देख सके और माता के  चरणो मे गिर पडे । माता अपने भक्त को उठाया और बोली कि तेरी तपस्या पूरी हुई तू क्या चाहता है सो मुझसे मागले। बाबा अपनी आराध्या माता को पहिचान गये और हाथ जोडकर कहने लगे कि, मैं किस कारण यहा आया हू आपको सब मालुम है । आप उस दुष्ट दानव दाना दह  का शीघ्र संहार करो ताकि उन ग्रामवासियो को शान्ति पहुचे। तब माता कहने लगी हे! भक्त मैं तेरी परोपकारिता पर अति प्रसन्न हू। मे विग्रह रुप मे हमेशा हमेशा के लिये तुम्हारे यहा रहूगी और तेरी अभिलाषा पूरी करूगी । इतना कह कर माता अंर्तध्यान हो गयी । 

 
माँ कैला देवी के रुप में अवतरित होकर दाना दह का वध किया
बताया जाता है कि, बाबा केदारगिरी कि तपस्या से जगजननी माता प्रसन्न हुई और माता ने कन्या रुप में, अष्ठभवानी रुप मे दर्शन दिये। आम जनता के दुःख निवारण हेतु माँ कैला देवी के रुप में इस स्थान पर अवतरित होकर दाना दह का वध किया और अपने भक्तों को भयमुक्त किया। तभी से भक्तगण उन्हें माँ दुर्गा का अवतार मानकर उनकी पूजा करते हुए आ रहे हैं। 
माता चामुण्डा
माना जाता है कि योगमायाकैला देवी के रूप में इस मंदिर में विराजमान है-
जैसा कि मान्यता है कि, द्वापर में भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव और माता देवकी को जेल में डालकर कंस ने जिस योगमायानामक कन्या का वध चाहा था, वह योगमाया कैला देवी के रूप में इस त्रिकूट पर्वत पर अवतरित हुई और कैलेश्वरी कहलाई जो आगे चलकर कैला देवी के नाम से प्रसिद्व शक्तिपीठ बना।  जिसको तपस्वी बाबा केदारगिरी द्वारा यहां बुलाया गया था। जो यहां मंदिर में विराजमान है। तब बाबा की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर माता भगवती ने राक्षस का वध कर दिया। दाना दह नामक राक्षस का वह स्थान आज भी उसके संकेतों के साथ मन्दिर से दूर कालीसिल पुल के पास विद्यमान है।
कंस ने जिस योगमायानामक कन्या का वध चाहा था, वह योगमाया कैला देवी के रूप में इस त्रिकूट पर्वत पर अवतरित हुई
भक्त बहोरा को कैला माता के दर्शन-
केदार गिरी गुफा के पास ही एक गुर्जर जाति का चरवाहा आया करता था बाबा उससे माता की महिमा के बारे मे चर्चा किया करते थे । जिसको सुनकर उसका मन भी माता की भक्ति की ओर मुड गया था वह अपनी भाषा मे रात दिन कैला माता का ध्यान करता था। माता ने उसकी यह हालत देखी तो एक दिन माता उसको भी दर्शन देने पहुची । माता के दर्शन देखकर बहोरा भाव विभोर होकर उस छटा को एक टक देखने लगा वह कुछ समझ नही पाया तब माता ने भक्त से कहा कि हे भक्त मे ही वो जगदम्बा सर्वशक्ति हू । जिसकी तू उपासना किया करता है । और अपनी भाषा मे मेरा यशगान किया करता है । माता बोली मे तेरी भक्ति से प्रसन्न हू बोल तुझे क्या चाहिऐ तब बहोरा ने कहा हे माता मे तेरे सामने इसी तरह खडा रहू । और तेरे दर्शन करता रहू तब माता ने कहा, भक्त मे जब यहा विग्रह रूप मे स्थापित होऊँगी तब तेरी यह इच्छा पूर्ण होगी । और जो व्यक्ति पित खोर से दुखी होगे उसके दुख तुम ही दूर करोगे। समय आने पर बहोरा इस नश्वर शरीर को छोडकर मूर्ति रुप मे पूजित हुआ जिसका मंदिर माता के सामने आज भी मौजूद है ।

तीन लोक चौदह भवन मे युग युग से योगमाया शासन है तेरा। शृद्धा के साथ जो भी आये वो दर्शन पाता जय करौली वाली देवी जय कैला माता ।

नए मकान की आस में यहां श्रद्वालु भक्तों द्वारा पर्वतमालाओं पर पत्थरों के छोटे छोटे प्रतीकात्मक मकान बनाए जाते हैं तो सुदूर क्षेत्र से आए श्रद्वालु यहां की पवित्र नदी कालीसिल में स्नान करना भी नहीं भूलते।

श्रद्वालु महिलाएँ इस कालीसिल नदी में स्नान कर खुले केशों से ही मंदिर में पहुंचती है और मां कैलादेवी के दर्शन करने के बाद वहां कन्या लांगुरिया आदि को भोजन प्रसादी खिलाकर पुण्य लाभ अर्जित करती दिखाई देती हैं।

सूनी गोद भरने की आस हो या सुहाग की चिरायु होने की कामना, कैला मां भक्त की हर मुराद जल्द ही पूरी करती है। लिहाज़ा मंदिर में आस पूरी होने पर श्रद्वालु अपने नवजात बच्चों को इस कैला मां के दरबार में लाते हैं, जिनका यहां मुंडन संस्कार किया जाता है।

पूरे आस्थाधाम में सजी हरी चूड़ियाँ अमर सुहाग का प्रतीक है, जिन्हें यहां आने वाली हर श्रद्वालु महिला पहनना नहीं भूलती।
लंगुरिया-

यहाँ क्षेत्रीय लांगुरिया के गीत विशेष रूप से गाये जाते है। जिसमें लांगुरिया के माध्यम से कैलादेवी को अपनी भक्ति-भाव प्रदर्शित करते है। कैलादेवी शक्तिपीठ आने वाले श्रद्वालुओं में मां कैला के साथ लांगुरिया भगत को पूजने की भी परंपरा रही है।
लांगुरिया को मां कैला का अनन्य भक्त बताया जाता है। इसका मंदिर मां की मूर्ति के ठीक सामने विराजमान है। किवदंतियों के अनुसार स्वयं बोहरा भगत के स्वप्न में आने पर इस मंदिर को यहां बनवाया गया था।
 
लंगुरिया: भदावर
लंगुरिया: भदावर में गाया जाने वाला लोकगीत है। भदावर के लोकगीत लंगुरिया में चंबल की माटी की सौंधी-सौंधी गंध महकती है। लंगुरिया लोकगीत करौली की कैलादेवी की स्तुति में गाए जाते है।  
लांगुरिया लोकगीत काल-भैरव जो कैलादेवी का गण है को सम्बोधित करते हुए गाए जाते हैं। भदावर की मिटटी पर यह भीषण, भयानक, डरावना काल-भैरव भी लांगुर-लांगुरिया बन, करौली की कैलादेवी के मंदिर तक पदयात्रियो के साथ-साथ नाचता हुआ चलता है।   

भदावर के गाँव-गाँव से ध्वज पताकाओं, नेजों के साथ छोटे-छोटे मंदिर वाहनों पर सजाकर गाते-बजाते, नाचते-कूदते भावविभोर होकर करौली मां के दरबार में अपनी मुरादें पूरी करने के लिए चल पड़ते है।  
हेरे कैला मैया को जुरौ है दरबार लगुरिया
करौली नामक स्थान कैला देवी का एक मंदिर है महिलाएँ ढोलक पर थपकियाँ लगाते हुये नृत्य गायन में मस्त हो जाती है तो ग्रामीण पुरुष बासुरी के स्वर में लंगुरियों के गीत गुनगुनाते है। भारतीय लोक संस्कृति मे लंगुरिया का विशेष स्थान रहा है देवी के इन लोकगीतों में नर-नारियों के मनोभावनाओं के दर्शन होते हैं - श्रद्धा और भक्ति छलकती है और परस्पर नाट्य भावना के अन्तर्गत संवाद भी सुनाई पड़ते हैं।

लंगुरिया नटखट-प्रेमी रूप में भक्ति काव्य में श्री कृष्ण का वाचक हो जाता है पति-पत्नी के
गीतों को गाते-गाते विविध रूप प्रदान किए हैं। लाखों कंठों ने गा-गा कर और लाखों लोगों ने मुग्ध होकर सुन-सुन कर इन गीतों को परम शक्तिशाली और हृदयस्पर्शी बना दिया है। कैलादेवी भी भक्तो की भक्ति भावना व् उल्लाष देख कर बोल उठती है

'लंगुरिया' गीत को कई और नामो से जाना जाता है 'कोस-कोस में पानी बदले, तीन कोस में बानी' को चरितार्थ करती इस धरती पर लोक विधायें भी थोड़ी-थोड़ी दूर पर बदल जाती है। इस प्रकार यहां की संस्कृति में देवी-गीतों का गायन कहीं अचरी तो कहीं ओमां तो कहीं जसगीत के रुप में दिखाई देता है। नयी पीढ़ी के द्वारा पूर्ण रुचि न लिये जाने के कारण आज के लोक-कलाकारों के प्रदर्शन में भी वह बात नही रह गई है। लंगुरिया लोकगीत को नयी पीढ़ी भुलाती जा रही है।

हेरे कैला मैया को जुरौ है दरबार लगुरिया, चलौ तो दर्शन कर आवे ।
हेरे झूला डारो है करौली के महल लंगुरिया चलौ तो दर्शन कर आवे ।।
काहे को याको बन्यो है पालनो, काहे की याकी डोर लंगुरिया चलौ तो दर्शन कर आवे।
सोने को याको बन्यो पालनो, रेशमी याकी डोर लंगुरिया चलौ तो दर्शन कर आवे ।।
लगा हे कैला मैया का दरबार लंगुरिया चलो तो दर्शन कर आवे ।।
जय कैला माता ।। जय माता दी ।।
लोकगीतों में ही परस्पर नाट्‌य भावना के अन्तर्गत संवाद भी सुनाई पड़ते हैं। एक स्त्री देवी के मेले में जाकर सम्मिलित होने के लिये उत्सुक है और अपने पति को इस देवी के मेले में चलने के लिये प्रेरित करती है परन्तु पति यह कहकर बहाना बनाकर देवी के मेले में जाने में आना-कानी करता है कि वे दोनों पति-पत्नी एक साथ मेले में कैसे जा सकते हैं, क्योंकि घर की सुरक्षा के लिये किसी न किसी का वहाँ रहना आवश्यक है। पति-पत्नी के परस्पर वार्तालाप को इंगित करता हुआ यह गीत देवी के मेले में जगह-जगह सुना जा सकता है -
चल पिया दोए मिल जाएँ, पूजै देवी जालपा ओ माय’,
तू धन असल गवांर, दोउन चलवो ना बनै ओ माय
अपने रसीले एवं दृढ़ तकसे वह अपने पति को देवी के मेले में जाने के लिये राजी कर लेती हैं। स्त्री के मधुर भक्ति भावों से देवी मैया अत्यन्त प्रसन्न हो जाती हैं और रात्रि को उनके सपने में आकर उन्हें आश्वासन देती हैं -
जती रे, घर की चिन्ता मत करियो,
मेरे लटक भवन चले आओ, जती रे :
घर पे बसाये दउगी जोगनी,
और दरवाजे लंगूर बलबीर, जती रे:
घर की चिन्ता मत करियो।
भैंस गयि्यन पै चित मत धरै,
मेरे झटक भवन चले आओ, जती रे।

इस प्रकार स्वप्न में देवी माता से बहू-बेटी, अन्न, धन, दूध, घोड़ा बच्चे आदि की चिंता न करने का अपेक्षित आश्वासन प्राप्त करने पर पति कैला देवी के मेले में जाने के लिये तैयार हो जाता है और देवी के दर्शन के लिये चल देते हैं। स्त्रियाँ हाथों में हरी चूड़ियाँ पहनती हैं, जो उनकी समृद्धि के सुख और सौभाग्य की प्रतीक है : खुले हुए बाल, सिर पर कलश रखकर, हाथों में मेंहदी रचाकर एवं नवीन वस्त्रों से सुसज्जित होकर (पुरुष भी प्राय: पीले रंग के नये वस्त्र धारण करते हैं, जो दार्शनिक पृष्ठभूमि में ज्ञान के सूचक हैं) नंगे पैर पथवारी के मंदिर में जाकर सपरिवार पूजन करके देवी के भवन की ओर प्रस्थान करते हैं। रास्ते में भी देवी और लंगुरिया का स्मरण करते रहते हैं-
लंगुरिया तेरी धन खाय लई कारे नाग ने :
कछु खाई, कछु डस लई और कछु मारीय फुफकार,
बारे लंगुरिया तेरी धन खाय लई कारे नाग ने।
बाग तमाशे में गई, केले केले पे लिपट रहयो नाग, लंगुरिया तेरी धन ...........,
ताल तड़ागन में गई, साड़ी-साड़ी पे लिपट रहयो नाग लंगुरिया.........,
कोट कुआ पे मैं गई गगरी-गगरी पे लिपट रहयो नाग, लंगुरिया........।
और भी अनेक स्थानों पर उन्हें नाग की ही मूर्ति दिखाई पड़ती है। रास्ते में चलते-चलते जब पति-पत्नी हैरान हो जाते हैं और थक जाते हैं तब भक्ति भाव में आत्मविभोर होकर पत्नी देवी को उलाहना देती है-
ऐसी कहा महारानी,
तू तो बैठी विकट उजाड़न में :
हार हमेल गुदी खंग बारी,
अरी मेरो तो हरबा उलझो झाड़न में :
नाक, चुनी नकवेसर सोहो,
अरी मेरी नथली इरझी झाड़न में :
अगले ऊपर पिछले सोहे,
अरी मेरे दस्ते उरझे झाड़न में :
पांव भरत के भर-भर बिछुआ,
अरी मेरी अनबट इरझी झाड़न में :
सालू सरस रशमी लहंगा,
अरी मेरी चुनरी अटकी झाड़न में :
ऐसी कहा महारानी तू तो बैठी विकट उजाड़न में।

और उन कटीले जंगलों की अनेक आपत्ति और परेशानी के पश्चात्‌ उन्हें अंतत: कैला देवी के भवन दृष्टिगोचर हुए तो उनके मुँह से संतोष के स्वर निकले-
झील में करोली बारी अड़ रही, बारे लांगुरिया
और अड़ रही भवनन बीच लांगुरिया
झील में करोली बारी अड़ रही।
        आखिरकार भवन पर देवी के मंदिर में जा पहुँचते हैं भक्त। पूजा करके देवी का भोग लगाकर गीत गाया और देवी के सामना अपनी मनोकामना भी रख दी- बहुएँ लाड़-लड़ीन कू पूत दै, जगतारन मैया।घी का दीपक जलाकर देवी की आरती भी उतारी गई। पूजा-पाठ के पश्चात्‌ देवी के भवनों और नीचे प्रांगणों में नाचरंग मनाये जाते है। लोकगीतों की झड़ी सी लग जाती है वहाँ। सिरपर मटके रखकर जोगिन देवी के समक्ष नाचगान में मस्त हो जाती हैं-
लांगुरिया हंस मत अइयो काउ ओर ते :
ज्यों हंस आयो काउ ओर ते, तो मरूँगी जहर बिष खाय लांगुरिया ...........:
हरबा गढ़ाय दउ भारे मोल को, याय पहर चलो आय लांगुरिया...........
ज्यो हंस आयो काउ ओर ते, करूँगी देवी के आगे न्याय,
लांगुरिया हंस मत अइयो काउ ओर ते।
और अंतरआत्मा से देवी के स्वर में आवाज आई-
हाथ खरच दउगी, जंघियन बल दउगी,
गोद में झडूलो दउगी, खायबे कू खरिया दउगी,
बैठबे कू गाडी दउगी : अचक बुलाए, जाती तोय
भवन घंटा बाज रहे चारो ओर,
चौरासी घंटा बाज रहे भवनों में।
और इस आनंद के साथ उल्लासमय भक्तगण जब वापस अपने घर लौटते हैं तो उनकी आशा, आकांक्षा तथा मनोकामनाएँ इस प्रकार व्यक्त होती हैं -
दे दै लंबो चौक लांगुरिया, बरस दिना में आमेंगे:
अबके तों हम छोरा लाये, परके बहुअल लावेंगे :
अबके तो हम बहुअल लाये, परके नाती लावेंगे।

और फिर वातावरण ध्वनित होता है -
बोल केला मैया की जय
जादौन क्षत्रिय करौली
प्राचीन काल मे ऋषि अत्रि के वंशज सोम, सोम के वंशज (सोमवंशी) चंद्रवंशी कहलाये । 
इस वंश के छठे चंद्रवंशी राजा ययाति के पुत्र चंद्रवंशी और राजा यदु के वंशज यदुवंशी कहलाये ।

यदुवंश की 39 वी पीढी मे श्री कृष्ण जी का जन्म हुआ था ।
इस प्रकार यदुवंश मे जादौन, भाटी, जडेजा, चूडासमा राजपूत वंश चले ।
राजस्थान मे करौली यदुवंशी जादौन राजपूतो की सबसे बडी रियासत है। करौली राज्य यदुवंशी राजपुत्रो की वीर भूमि है। करौली राजघराने से निकल कर इनके वंशज भारत मे कई जगहो पर रहने लगे। मध्यप्रदेश मे जिला भिण्ड, मुरैना, ग्वालियर, मे इनके कई गढ़ है । भिण्ड मे - जैतपुरा मढी, बौहारा, बिरखडी, लहार, विजपुरा, रहावली, उढोतगढ़, मानपुरा, पीपरपुरा तथा मुरैना मे - सबलगढ, सालई, हीरापुरा, अटा, सुमावली, नरहेला आदि 500 गाँव है । महाराष्ट तथा U.P. मे आगरा , अलीगढ ,बुलंदशहर , ऐटा ,फिरोजाबाद , सिरसागंज आदि जगह इनके ठिकाने है ।
मुगल काल में करौली युवराज ने देवी मॉ से युद्व में विजयी होने की मनौती मॉगी और वो उस युद्व में विजयी हुए तो कैलादेवी करौली के यदुवंशी शासकों की कुल देवी के रूप में पूजी जाने लगी। करौली के शासकों ने मन्दिर को भव्य रूप दिया। नदी पर पुल बनबाया और सड़कों धर्मशालाओं, कुओं, बाबडी का निर्माण कराकर बीहड क्षेत्र का विकास करा दिया। बहुत समय से कैला देवी मन्दिर का एक प्रबंधन ट्रस्ट बना हुआ हैं जो मेलों के अलावा अन्य सारी व्यवस्थाओं की देखभाल करता है।
करौली के महाराजा मदनपाल जी के बारे मे कहा जाता है कि जब वो सिघं।सन पर बैठते थे तो अपने दौनो हाथ दो शेरो के उपर रखते थे।
 
Maharaja Bhom Pal Ji of Karauli
                            श्री कैलादेवी चालीसा !!
दोहा :-
जय जय कैला मात है तुम्हे नमाउ माथ |
शरण पडू में चरण में जोडू दोनों हाथ ||
जय जय जय कैला महारानी |
नमो नमो जगदम्ब भवानी |1|
सब जग की हो भाग्य विधाता|
आदि शक्ति तू सबकी माता |2|
दोनों बहिना सबसे न्यारी |
महिमा अपरम्पार तुम्हारी |3|
शोभा सदन सकल गुणखानी |
वैद पूराणन माँही बखानी |4|
जय हो मात करौली वाली |
शत प्रणाम कालीसिल वाली |5|
ज्वालाजी में ज्योति तुम्हारी |
हिंगलाज में तू महतारी |6|
तू ही नई सैमरी वाली |
तू चामुंडा तू कंकाली |7|
नगर कोट में तू ही विराजे |
विंध्यांचल में तू ही राजै |8|
घोलागढ़ बेलौन तू माता |
वैष्णवदेवी जग विख्याता |9|
नव दुर्गा तू मात भवानी |
चामुंडा मंशा कल्याणी |10|
जय जय सूये चोले वाली |
जय काली कलकत्ते वाली |11|
तू ही लक्ष्मी तू ही ब्रम्हाणी |
पार्वती तू ही इन्द्राणी |12|
सरस्वती तू विध्या दाता |
तू ही है संतोषी माता |13|
अन्नपुर्णा तू जग पालक |
मात पिता तू ही हम बालक |14|
ता राधा तू सावित्री |
तारा मतंग्डिंग गायत्री |15|
तू ही आदि सुंदरी अम्बा |
मात चर्चिका हे जगदम्बा |16|
एक हाथ में खप्पर राजै |
दूजे हाथ त्रिशूल विराजै |17|
काली सिल पै दानव मारे |
राजा नल के कारज सारे |18|
शुम्भ निशुम्भ नसावनि हारी |
महिषासुर को मारनवारी |19|
रक्तबीज रण बीच पछारो |
शंखा सुर तैने संहारो |20|
ऊँचे नीचे पर्वत वारी |
करती माता सिंह सवारी |21|
ध्वजा तेरी ऊपर फहरावे |
तीन लोक में यश फैलावे |22|
अष्ट प्रहर माँ नौबत बाजै |
चाँदी के चौतरा विराजै |23|
लांगुर घटूअन चलै भवन में |
मात राज तेरौ त्रिभुवन में |24|
घनन घनन घन घंटा बाजत |
ब्रह्मा विष्णु देव सब ध्यावत |25|
अगनित दीप जले मंदिर में |
ज्योति जले तेरी घर घर में |26|
चौसठ जोगिन आंगन नाचत |
बामन भैरों अस्तुति गावत |27|
देव दनुज गन्धर्व व् किन्नर |
भुत पिशाच नाग नारी नर |28|
सब मिल माता तोय मनावे |
रात दिन तेरे गुण गावे |29|
जो तेरा बोले जैकारा |
होय मात उसका निस्तारा |30|
मना मनौती आकर घर सै |
जात लगा जो तोंकू परसै |31|
ध्वजा नारियल भेंट चढ़ावे |
गुंगर लौंग सो ज्योति जलावै |32|
हलुआ पूरी भोग लगावै |
रोली मेहंदी फूल चढ़ावे |33|
जो लांगुरिया गोद खिलावै |
धन बल विध्या बुद्धि पावै |34|
जो माँ को जागरण करावै |
चाँदी को सिर छत्र धरावै |35|
जीवन भर सारे सुख पावै |
यश गौरव दुनिया में छावै |36|
जो भभूत मस्तक पै लगावे |
भुत प्रेत न वाय सतावै |37|
जो कैला चालीसा पड़ता |
नित्य नियम से इसे सुमरता |38|
मन वांछित वह फल को पाता |
दुःख दारिद्र नष्ट हो जाता |39|
गोविन्द शिशु है शरण तुम्हारी |
रक्षा कर कैला महतारी |40|
दोहा :-
संवत तत्व गुण नभ भुज सुन्दर रविवार |
पौष सुदी दौज शुभ पूर्ण भयो यह कार ||
बोल देवी श्री कैला मैया की जय

सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिँह राठौङ की तरफ से नमस्कार!